कभी नाम ले के बुला सको

01-12-2025

कभी नाम ले के बुला सको

सुशील यादव (अंक: 289, दिसंबर प्रथम, 2025 में प्रकाशित)

 

कामिल मुसम्मन सालिम
मुतुफ़ाइलुन मुतुफ़ाइलुन मुतुफ़ाइलुन मुतुफ़ाइलुन
 

11212    11212    11212    11212
 
कभी नाम ले के बुला सको, कभी दर्द मेरा सँवार लो
मैं हसीन चेहरा हूँ वक़्त का, मुझे रोज़-रोज़ उधार लो
 
न मिटा सका, न बना सका, न जला सका, न बुझा सका
तुझे ज़िन्दगी है दिया नशा, तो यहाँ मुझी से ख़ुमार लो
 
मैं सवाल तुमसे करूँ नसीब, जवाब क्या दे ये ज़िन्दगी
तुझे चाहिए है ख़ुशी, तो मशवरा भी हमीं से हज़ार लो
 
ए चिराग़ बुझ रहे, हाँ सलामती की दुआ करो आप भी
जहाँ मिल सके वहाँ झाँक लो, कहीं दर्द हो तो क़रार लो
 
कमा लूँ मैं एक ख़ुशी, बना के ज़ुबान को यहाँ ‘सुशील’ भी
मुझे तो'हमत का ख़्याल है, कि नवाज़िशों से पुकार लो
 
कभी तोड़ता है वो सामने, तो कभी जुड़ा सा मैं हो गया
सजा लूँ गुलाब सा दर्द को, सफ़ा हर किताब उतार लो

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