मिरे आगे तमाशा हो रहा है

15-05-2025

मिरे आगे तमाशा हो रहा है

सुशील यादव (अंक: 277, मई द्वितीय, 2025 में प्रकाशित)

 

बहर: हज़ज मुसद्दस महज़ूफ़
अरकान: मुफ़ाईलुन मुफ़ाईलुन फ़ऊलुन
तक़्तीअ: 1222 1222 122
 
मिरे आगे तमाशा हो रहा है
हाँ खर-पतवार पैदा हो रहा है
 
बहुत जीते रहे हम शहर तेरे
अभी मरना ज़रा-सा हो रहा है
 
कोई लूटा है मेरी हस्ती बे-दम
उसूलों मेरे क़ब्ज़ा हो रहा है
 
भटक के दर-ब-दर आए कहाँ पर
हमें दुश्वार जीना हो रहा है
 
जिसे पाला था हमने शौक़ से वो
हमारा दिल क़मीना हो रहा है
 
अभी तो थाम कर तू चल रियासत
अभी से क्यों पसीना हो रहा है
 
वहाँ बातें सितारों से हुई हों
यहाँ गर्दिश नगीना हो रहा है

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