चुनावी दोहे

15-07-2019

चुनावी दोहे

सुशील यादव

एक जमूरा पीटता, खूब फटे तक ढोल
मुँह से पर निकले नहीं, ढाई आखर बोल
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खोलो मन की खिड़कियाँ, दरवाज़े भी खोल
प्रजातन्त्र में छूट है, जो चाहे सो बोल
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मन को अपने मैं रखूँ, कहाँ-कहाँ मौजूद
ये किस जनम उधार का, रोज़ चढ़े है सूद
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कथनी-करनी है नहीं, व्यापक कहीं प्रचार
हर बन्दर के हाथ में, अदरक दिखे अचार

इस चुनाव मैदान में, उतरे लोग अपार
सीधे-सादे हैं विरल, गिनती के दो-चार
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कोई अपनी औक़ात का, भूला भूत तमाम
इसीलिए तो कर रहा, उल्टे- सीधे काम
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तेरे मन पर नित कहीं, डाल रहा है डोर
चिकनी चुपड़ी बात पर, पड़ना मत कमज़ोर
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जाते-जाते राज यूँ, बतला गया नवाब
काँव-काँव केवल कहे, काके काक कबाब
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दूभर है कहना अभी, लाज-शर्म की बात
होली पर उनकी चले, अपनी क्या औक़ात
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