माकूल जवाब 

01-10-2022

माकूल जवाब 

सुशील यादव (अंक: 214, अक्टूबर प्रथम, 2022 में प्रकाशित)

इंतिज़ाम सारे का सारा रखते है
ख़्याल हर हाल तुम्हारा रखते हैं 
 
तुम राह जहाँ अंगारा रखती हो
हम क़दम वहीं दोबारा रखते हैं
 
ख़ामोशी से मत अंदाज़ लगाओ
आधी डर नाव किनारा रखते हैं
 
इश्तहार अगर चूक गई हो पढ़ना
हम ख़बर भेजने हरकारा रखते हैं
 
ये हमारी कम नसीबी गिन देखो 
तुझे पाने ज़िद करारा रखते हैं
 
जो देना हो दे-दे ऊपर वाला
वो हिसाब सभी ख़सारा रखते हैं
 
यादों के जंगल ना भूलो भटको 
दुश्मन के नाम नज़ारा रखते हैं
 
अहम सवाल नहीं पूछती ज़िन्दगी 
जवाब माकूल सा प्यारा रखते हैं
 
पछतावा सा होते रहता हरदम क्यूँ 
हर ताना ख़ुद पे गवारा रखते हैं 
 
ख़सारा = नुक़्सान, हानि

0 टिप्पणियाँ

कृपया टिप्पणी दें

लेखक की अन्य कृतियाँ

सजल
ग़ज़ल
नज़्म
कविता
गीत-नवगीत
दोहे
हास्य-व्यंग्य आलेख-कहानी
कविता-मुक्तक
पुस्तक समीक्षा
विडियो
ऑडियो

विशेषांक में

लेखक की पुस्तकें