ये है निज़ाम तेरा

11-02-2015

ये है निज़ाम तेरा

सुशील यादव

२२१२   २२१२   २२१२   १२१२

दरवेश के हर हुजरे से अब मेहमां हटाइए
जो लाश ले चलती ग़रीबी, दरमियाँ हटाइए

बार-ए-गिरेबां को कलफ़ न मिले जहाँ नसीब में
तहज़ीब की अब उस कमीज़ से गिरेबां हटाइए

ये है निज़ाम तेरा, सफ़ीना सोच कर उतारना
चलती हवा दरिया से बे-मकसद तुफ़ां हटाइए

उनको बिछा दो मखमली कालीन मगर साहेब
उम्मीद की बुनियाद हों काँटे, वहाँ हटाइए

जाने कोई क्यों खटकता है आँख में दबा-दबा
अब हो सके मायूस नज़रें अँखियाँ हटाइए

 

दरवेश = संत
हुजरे= निजी कमरा
बार-ए-गिरेबाँ- कमीज़ के कॉलर का वज़न
नि्ज़ाम = व्यवस्था, सफ़ीना=नाव

0 टिप्पणियाँ

कृपया टिप्पणी दें

लेखक की अन्य कृतियाँ

सजल
ग़ज़ल
नज़्म
कविता
गीत-नवगीत
दोहे
हास्य-व्यंग्य आलेख-कहानी
कविता-मुक्तक
पुस्तक समीक्षा
विडियो
ऑडियो

विशेषांक में

लेखक की पुस्तकें