नफ़रतों के बाज़ार से सौदा कोई ख़रीदना मत

01-09-2025

नफ़रतों के बाज़ार से सौदा कोई ख़रीदना मत

सुशील यादव (अंक: 283, सितम्बर प्रथम, 2025 में प्रकाशित)

 

अरकान: फ़ेलुन फ़ेलुन फ़ेलुन फ़ेलुन फ़ेलुन फ़ेलुन फ़े
तक़्तीअ: 22    22    22    22    22    22 2
 
नफ़रतों के बाज़ार से सौदा कोई ख़रीदना मत
मतलब के ख़ुद-ग़र्ज़ तराज़ू चीज़ों को तौलना मत
 
हिज्र की धूप में सब्र का छाता क़रीब रखना बस
व्यर्थ पसीना बहाते आवारगी में भीगना मत
 
जिस सुब्ह की तलाश वो आएगी एक दिन ज़रूर
गिरते तारे गिन रातों ख़ामोशी में जागना मत
 
क़ातिल की सूरत जो देखी है बता दुनिया को
ख़ाली नक़ाब को देखकर ज़ियादा चीखना मत
 
हम भी लगे हैं बनाने में भाई-चारे की दुनिया नई
हौसला-अफ़्ज़ाई में हमारी पीछे छूटना मत

0 टिप्पणियाँ

कृपया टिप्पणी दें

लेखक की अन्य कृतियाँ

ग़ज़ल
कविता-मुक्तक
सजल
नज़्म
कविता
गीत-नवगीत
दोहे
हास्य-व्यंग्य आलेख-कहानी
पुस्तक समीक्षा
विडियो
ऑडियो

विशेषांक में

लेखक की पुस्तकें