वो तबीयत से हमें तरसा गई अच्छा हुआ

15-07-2025

वो तबीयत से हमें तरसा गई अच्छा हुआ

सुशील यादव (अंक: 281, जुलाई द्वितीय, 2025 में प्रकाशित)


बहर: रमल मुसम्मन महज़ूफ़
अरकान: फ़ाएलातुन फ़ाएलातुन फ़ाएलातुन फ़ाइलुन
 
तक़्तीअ: 2122    2122    2122    212
 
वो तबीयत से हमें तरसा गई अच्छा हुआ
वक़्त रहते कुछ हदें समझा गई अच्छा हुआ
 
ख़ैरियत की वो हमारी क़्या फ़िकर करती भला
बात मुश्क़िल थी उसे निपटा गई अच्छा हुआ
 
ख़ूब मायूसी के दिन कटते नहीं थे बारहा
ज़ुल्फ़ की बदली कहीं लहरा गई अच्छा हुआ
 
जब हुआ करती बग़ीचे में गुलाबों की महक
साथ अपनी ख़ुश्बू भी फैला गई अच्छा हुआ
 
था मिरा अंजाम पाऊँ मैं सज़ाये ज़िन्दगी
हथकड़ी हाथों मिरे पहना गई अच्छा हुआ
 
जानता हूँ मैं उसे अच्छा लगेगा भी नहीं
मर्ज़ मेरी सुन के बस घबरा गई अच्छा हुआ
 
एक स्वेटर नाप लेकर जो बुना मेरे लिए
ख़्वाब को अपने वही पहना गई अच्छा हुआ
 

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