नास्त्रेदमस और मैं...
सुशील यादवजनाब नास्र्त्रेदमस ने सन बावन, यानी उन्नीस सौ बावन के बैसाख दसवीं तिथि को मध्यभारत इलाक़े में पैदा हुए किसी शख़्स का ज़िक्र नहीं किया अफ़सोस।
वे चाहते तो कर सकते थे।
इस इलाक़े में पैदा हुआ शख़्स, एक दिन साहित्य की आकाशगंगा का भव्य सूरज होगा?
इसके चारों तरफ़ फ़ेसबुकिया संसार का हज़ारों की तादात में लाइक और कॉमेन्ट जैसा माहौल होगा।
इसके लिखे को न चाहते हुए भी लाखों लोगों को कुनैन की गोली माफ़िक गुटकना, पढ़ना होगा।
एक समय, राष्ट्रीय स्तर पर आकलन या स्टेटिस्टिक्स पर शोध करने वाले आश्चर्य करेंगे की हाड़-मांस का एक ऐसा भी शख़्स अवतरित हुआ था, जिसने बाहुबली से ज़्यादा ख्याति अर्जित की।
उसके सारे रिकार्ड तोड़ दिए।
पुरुस्कारों की झड़ी लगी रहती।
लौटाने का कोई मौक़ा हाथ लगता तो फ़ख़्र से कहते, अरे नत्थू, देख तो आले में कहीं भजन मण्डली ने पिछले साल फाग लेखन पर जो दिया था, उसे साफ़-आफ कर, उसे लौटा के गौरव प्राप्त कर लें।
जनाब नास्त्रेदमस, शायद साहित्य साईड के नहीं थे।
हिंदी साहित्य की तरफ़ उनके समकालीनों ने, उनका ध्यान नहीं खींचा...? तुलसी, रसखान या उर्दू के मियाँओं उनको प्रभावित करने की बजाय या तो अपने इष्ट देव में डूबे रहे या बेवड़े राजाओं की जी हुज़ूरी चापलूसी में लगे रहे। बहरहाल ध्यान खींचा जाना चाहिए था। आज आलम दूसरा कुछ होता। ये सारे विश्व की भाषा होती। कई बार इस कमी पर हिन्दी दिवस में ये बात कहने की इच्छा होती है। ख़ैर ये दीगर बात है।
हाँ तो उस ज़माने में गूगल टाइप के उपयोगी तंत्र ईजाद नहीं हुए थे। चट खोला, बोला और हो गया, वाला वो ज़ामाना ही नहीं था। तब बात जूँ की तरह, ‘इलाक़ा ऐ ख़ास’ में रेंग कर जाती थी।
अगर हिन्दी दिग्गज विद्वानों को पाँच सौ साल बाद की तरक़्क़ी का मालूम होता तो वे अपने किये को उनके मार्फ़त विज्ञापित अवश्य करवा लेते। नास्त्रेदमस कहते अमुक के लिखे का दो सौ सालों बाद पाठ कर लें तो मोक्ष मार्ग प्रशस्त हो जाएगा। हमारे योग वाले बाबा दम ठोक के कहते हैं उनके सरसों तेल में कोई मिलावट नहीं है, बतर्ज यही वे कहते, इनकी लेखनी में सारा दम है, शुद्ध है, श्रेष्ठ है। इसमें प्रेयसी से लेकर प्रभु और राजा से अफ़सर को गाँठने की अद्भुत क्षमता है।
उन्होंने हिंदी में हज़ार कहानी, सौ-सौ से ज़्यादा पुस्तक लिखने वालों को रत्ती भर वज़न नहीं दिया। इससे हिंदी की अपार क्षति हुई।
वह भूगोल, इतिहास, राजनीति तक केन्द्रित रहे। इसी को अपनी "भविष्य-वाणी" का विषय चुना। इन विषयों की भविष्य-वाणियाँ बहुत ही माकूल बैठती हैं। ऐसे कई विषयों की भविष्यवाणी की घोषणा हम यहीं से आज बैठे-बैठे कर सकते हैं।
“आज से पचास साल बाद दुनिया के पश्चिम इलाक़े में ज़बर्दस्त सुनामी विपदा आएगी जिसमें जन-धन की भारी क्षति का ज़ोरों से अनुमान लगाया जा सकता है। दुनिया में कुछ आतंकी, इतने तूफ़ान मचाएँगे जो दस हरिकेन की ताक़त से ज़्यादा होंगे।
एक पुच्छल तारा टूटकर धरती से टकराने को मचलेगा मगर दैनिक वेतन भोगी नासा के नौसिखिये उसका तोड़ निकालने में कामयाब हो जाएँगे।
फ़तवा देने वाले एक धर्मगुरु को छै-तलाक़ का डबल डोज़ देके, उसकी ब्याहता बैठ जायेगी।
मेरे ख़्याल से जनाब नास्त्रेदमस ने "जिसकी लाठी उसकी भैंस" जैसी आजकल की विज्ञापन फ़िल्मों का अंदाज़ा नहीं किया हो ....? अन्यथा इस विषयक उनकी बात अख़बारों में ज़रूर खुलती।
वे भैंस, गाय, पशु, चारा की मिक्स्चर राजनीति पर भी अनुमान लगाते और ज़रूर कुछ बोले होते, बशर्ते चौरासियानुमा कोई मीडिया वाला, जो उन दिनों नहीं पाये जाते थे, बलात टिप्पणी का उनपे दबाव बनाते।
उनकी एक-एक भविष्यवाणी का मीडिया में पंचायत बिठा-बिठा के विश्लेष्ण करवाया जाता।
हर टी.वी. ऐंकर तब ये दावा करता कि नास्त्रेदमस वाली बात, सबसे पहले उनके चैनल ने पकड़ी।
वे जबरिया भारत की राजनीति को उनके गले में बाँध के कहलवाते, आज से ढ़ाई सौ साल बाद कोई कच्छी, बुलावे का न्योता यूँ भेजता "कुछ दिन तो गुज़ारो गुजरात में"!
भाई नास्त्रेदमस, आपने बुलावा जो दिया उसका तहे दिल से शुक्रिया। आपके कहे पर हम उधर हो भी आये, आपने शायद पूर्वानुमान लगाया कि उस मुल्कवाले घमासान मचाएँगे जिसके चश्मदीद लोगों में कमी न हो इसी का इंतिज़ाम किये दे रहे थे ....?
नास्त्रेदमस जी आपने योग बाबा, निरोग बाबा, बलात्कारी बाबा, सत्ता-बाबा, सट्टा-बाबा, या बैंक-घपला बाबा के समय-समय पर पैदा होने की जानकारी ही नहीं दी। आपके भविष्य ज्ञान पर कभी-कभी न चाहते हुए भी शक़ होता है।
ये लोग, कैसे क्या-क्या जुगत भिड़ा के बेख़ौफ़ पीट रहे हैं। दूसरों के जमे-जमाये व्यापार को तरीक़े से किनारे लगाने वालों में इनके समकक्ष कोई और आयेगा या नहीं ....? आपकी भविष्य डिक्शनरी में कहीं ये है कि नहीं ...?
इंडिया पर आप मन्द बुद्धि के क्यों हो गए ...?
जवाब दो ....?
आपको उस ज़माने में आई डी, सीबी आई, रा, एफ बी आई, डान या दीगर खुफिया एजेंसियों का ख़ौफ़ तो था नहीं ... जो आपका कुछ उखाड़ते ...?
बैंक घोटालेबाजों, ढहने वाली पुलिया बनाने वालों, खाकी धारियों पर आपकी नज़रें इनायत रहीं। वे आपके मैप में नज़र ही नहीं आये ...? चलो अच्छा हुआ ..। ये सब हमारे लोकल ईशु हैं हम अलग से देख लेंगे। इनका भविष्य तो पॉलिटिकली रिवाल्वर होता है। इनके बारे में कुछ कहने से ज़्यादा तो कुछ होगा नहीं, हाँ दीवाली पर मिलने वाले गिफ़्ट पैकेट में थोड़ी कमी आ जायेगी बस।
आगे क्या कहें .....?
आजकल यूँ ही अनाप–शनाप सपने देखने के दिन चल रहे हैं अपने......!
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