ग़ौर से देख, चेहरा समझ

15-06-2024

ग़ौर से देख, चेहरा समझ

सुशील यादव (अंक: 255, जून द्वितीय, 2024 में प्रकाशित)

 

फ़ाइलुन फ़ाइलुन फ़ाइलुन
 
212      212       212
 
ग़ौर से देख, चेहरा समझ
सोच में ख़ुद को, ज़िन्दा समझ
 
सीख लेगा, सियासत का खेल
सादगी-संयम, अपना समझ
 
गर्व की, कब उड़ी, कोई पतंग
आसमां-डोर, उलझा समझ
 
शोर गलियों में, दीवार ख़ुद 
इश्तिहारों सा, चिपका समझ
 
चाहतों को लुटा हाथ से
नाम नेमत से, फैला समझ
 
जो करे हर सभा रौशनी
सर वहीं पे, झुकाया समझ
 
फूँक दे जो सियासत में घर
आदमी वो है, तनहा समझ
 
हम चिरागों को ले ढूँढ़ते
देवता मिलता जुलता समझ
 
आप नाराज़ होते रहे
हमको भी ख़ुद से ग़ुस्सा समझ

0 टिप्पणियाँ

कृपया टिप्पणी दें

लेखक की अन्य कृतियाँ

सजल
ग़ज़ल
नज़्म
कविता
गीत-नवगीत
दोहे
हास्य-व्यंग्य आलेख-कहानी
कविता-मुक्तक
पुस्तक समीक्षा
विडियो
ऑडियो

विशेषांक में

लेखक की पुस्तकें