एक झोला छाप वार्ता......

03-01-2016

एक झोला छाप वार्ता......

सुशील यादव

हमारी दोस्ती बचपन से थी। वो मेट्रिक में फेल हो हो के झोला छाप डाक्टर बन गया। लोग उन्हें ‘डाक्टर झोला’ नाम से पीठ पीछे जानते हैं।

तब, जब डाक्टरों की कमी हुआ करती थी, उसने अपने पेशे से बहुत कमा लिया। हम दो-चार दोस्त उसी के साथ पढ़ते थे, जब आपस में मिलते, बस उसके पेशे के पीछे पड़ जाते। वो अपने किस्से भी हम लोगों से बेतकल्लुफ़ हो के सुनाया करता।

गॉड`बैगाओ की वो बस्ती छोटी सी बस्ती थी। वहीं एक सायकल दूकान और टपोरी से होटल के बीच, उसने अपना क्लीनिक खोल रखा था।

पुरानी खाली शीशियाँ, कुछ ज़रूरत भर की दवाइयाँ, बेंडेज का सामान,एक पुराना टेबल फ़ैन, टार्च, टेबल लेंप,रिवाल्विंग चेयर, बस इतना सा सामान जो उस ज़माने में डाक्टर कहे जाने लायक काफी था, जो उसके क्लीनिक में था।

उसके रहते, हम यार-दोस्तों को सर्दी ज़ुकाम के इलाज के लिए कहीं भटकना नहीं पड़ता था। वैसे, उससे इलाज से पहले हम दस बार कन्फर्म कर लेते जो दे रहा है, सो सही है कि नहीं? वो अपना राज़ उगल देता, यार मेरे क्लीनिक में सिवाय एनासिन,एस्प्रो, डिस्प्रीन और पेरासिटामोल के कोई और दवाई होती नहीं। ये हर मर्ज की फिट दवा है। हमारी डाक्टरी का ये तजुर्बा है कि इन दवाइयों को अचूक नुस्खे की तरह मरीज़ को दे दो। चार दिन में मरीज़ ठीक हो जाता है। हमारी दवा काम करे या ना करे, मरीज़ का मर्ज अपना इलाज ख़ुद दो तीन दिन में ढूढ लेता है। दरअसल हरेक बाडी में अंदरुनी इम्यून सिस्टम होता है जो छोटी-मोटी बीमारी से लड़ने के लिए दवा-पानी का इन्तज़ाम ख़ुद कर लेती है। उधर मरीज़ समझते हैं की हमारी दवा से सब फ़ायदा पहुचा। बढ़िया इलाज पाने के एवज हर रोज़, दो-चार मरीज़ आकर पैर छूकर चले जाते हैं।

हम लोग उनको छेड़ते यार जब एम आर दवा सेम्पल दिखाने आते हैं तो खूब इंग्लिश झाड़ते हैं। वो बताता, देखो हमने जुम्मे का दिन फिक्स किया है उंनके लिए उस दिन हम बाकायदा टाई लगा के बैठते हैं, बस स्टेंड की तरफ़ से आते हुए अंग्रेज़ी का पेपर खरीद लाते हैं, रौब पड़ता है। हमारी नीयत फ्री सेम्पल पर रहती है। उतना उनसे अंग्रज़ी बोल लेते हैं। जैसे ही वे आर्डर के लिए ज़ोर देते हैं, आप लोगों के रटाये हुए जवाब पोलाइटली सुना देते हैं, कह देते हैं - नेक्स्ट टाइम ....!, लेट मी फर्स्ट सी इफ़ेक्ट इन फ्यू पेशेंट....., श्योरली आई विल रिकमंड इट .... । वे चल देते हैं नेक्स्ट टाइम मुश्किल से कोई पलट के आता है।

"हमने सुना है कोई नर्स इंगेज किया है।"

झोला ने एक निगाह चारों और फेंकी ..... "किसने बताया तुम लोगो को ....?"

हमने कहा, "उड़ो, मत, सच-सच बताओ .....।"

"अरे ऐसा था एक डिलेवरी पेशेंट है, उसके चेकअप के लिए एक नर्स को स्टेथेस्कोप, एप्रेने वगैरा पहना के डाक्टर बना के बुलवा लिया था बस .....।"

हम लोगों ने छेड़ा, "अगली बार वो कब आने को है .....?"

झोला ने टापिक बदलने की गरज से कहा, "तुम लोग इंटरेस्टेड हो तो कहो, लाइन लगवा दूँ ....?"

उस दिन सब दोस्तों के चले जाने के बाद मुझसे बोला, "यार तुम भी पूरी बरात को न्योतने लगे? तुम्हारी बात लग है आइन्दा इस टापिक में बात न हो ये तुम्हारी ज़िम्मेदारी है।

इस मोहल्ले में सब इज्जत की नज़र से देखते हैं और तुम लोग वहीं चोट करने लग जाते हो।"

झोला कुछ ज़्यादा बिफर पाता उससे पहले मैंने कह दिया, "ज़रा देख समझ कर हेंडल कर यार, बाहर तुझे नहीं मालूम लोग फुसफुसाने लगे हैं।"

उसके चहरे पर बाहर की बातें, जो मैंने ऐसे ही फेंक दी थी, जानकार हवाइयाँ उड़ने लगीं।

 अगले दम उसने कहा, "यार चीज़ अच्छी है, शेयर करने के लिए ना नहीं करेगी। कोई माकूल जगह हो तो बता।"

इस बीच दो-एक पेशेंट आये, उन्हें उसने कल वाली दवा फिर ले लेने की सलाह देकर, फीस ले ली। मैं अवाक झोला छाप को देखते रह गया।

न चेकअप, न जाँच, न पूछताछ हो गया ग़रीबों का झोला छाप इलाज .....।

इससे पहले कि कोई और इस टाइप के इलाज का शिकार हो, मै अपनी झोलाछाप वार्ता को सामाप्त कर उठ खडा हुआ। हालाँकि एक अच्छे दिलचस्प टापिक के करीब से अपना पीछा छुड़ाते हुए कुछ अफ़सोस ज़रूर हो रहा था।

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