एतराज़ के अभी, पत्थर लिए खड़े हैं लोग 

01-04-2024

एतराज़ के अभी, पत्थर लिए खड़े हैं लोग 

सुशील यादव (अंक: 250, अप्रैल प्रथम, 2024 में प्रकाशित)

फ़ाइलात मुफ़तइलुन फ़ाइलात मुफ़तइलुन
2121    2112    2121    2112
 
एतराज़ के अभी, पत्थर लिए खड़े हैं लोग 
आज ख़ास, सारथी की फ़िक्र में, अड़े हैं लोग
 
मोड़ पर तुझे दे सकूँ, मैं हिदायतें लौटने 
कुछ नगीना, उम्र-घड़ी, जानकर जड़े हैं लोग
 
यूँ हमें, अँधेरे में कुछ, देखने की बात कहाँ 
जो गुज़ारते हैं, उजालो में दिन, बड़े हैं लोग
 
जेल की सलाख, अभी जानता नहीं तू यहाँ
सींखचों तिहाड़ की, जादूगरी, सड़े हैं लोग
 
चाहतों का खेल इधर, खेलना तुझे भा गया
फोड़ना नहीं कि यही, क़ीमती घड़े हैं लोग

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