पास अपने मुझको वो जब भी बुला लेगा

01-12-2025

पास अपने मुझको वो जब भी बुला लेगा

सुशील यादव (अंक: 289, दिसंबर प्रथम, 2025 में प्रकाशित)

 

फ़ाएलातुन फ़ाएलातुन फ़ाएलातुन फ़े
 
2122    2122    2122    2
 
पास अपने मुझको वो जब भी बुला लेगा
ख़ुश्बू से वो ख़ूब, जी भर के नहा लेगा। 
 
कोने में दिल के छिपी तस्वीर है उस की
जब भी चाहे अक्स मेरा वो बना लेगा
 
फ़ेंक देते जान के बेकार की चीज़ें
उन समानों को उठाकर वो सजा लेगा। 
 
योजना के काग़ज़ों पर नाव जो चलती
कर दो ज़िम्मे उसके जब भी, वो चला लेगा
 
बात उसकी यार करते अब थके होंगे
कल को साहब की वही ख़ाली जगा लेगा। 
 
फ़ेंकता ज़्यादा ही हद से भी नहीं ऐसा
साँस लेने के सबब कुछ तो हवा लेगा। 
 
दुश्मनी में माँगता हूँ मैं तरफ़दारी, 
बस सुना कोई राज़ कुछ दिल में छुपा लेगा
 
तुमने उस की राह काँटों को बिछाया है। 
कल झपकते ही पलक काँटे हटा लेगा। 

0 टिप्पणियाँ

कृपया टिप्पणी दें

लेखक की अन्य कृतियाँ

ग़ज़ल
कविता-मुक्तक
सजल
नज़्म
कविता
गीत-नवगीत
दोहे
हास्य-व्यंग्य आलेख-कहानी
पुस्तक समीक्षा
विडियो
ऑडियो

विशेषांक में

लेखक की पुस्तकें