अँदाज़ यूँ लगा बैठे थे सानेहा उसको

15-10-2025

अँदाज़ यूँ लगा बैठे थे सानेहा उसको

सुशील यादव (अंक: 286, अक्टूबर द्वितीय, 2025 में प्रकाशित)

 

मुज्तस मुसम्मन मख़बून महज़ूफ़ मस्कन
 
मुफ़ाइलुन फ़इलातुन मुफ़ाइलुन फ़ेलुन
 
1212    1122    1212    22
 
अँदाज़ यूँ लगा बैठे थे सानेहा उसको
इसीलिए कभी छोड़ा था चाहना उसको
 
वो सख़्त याद की ज़ंजीर ये पता है जब
निगाह भर ज़रा देखें जो तोड़ना उसको
 
घड़ी में तोला घड़ी में वो माशा बन जाती
नज़र-नज़र का फ़क़त फ़र्क़ तौलना उसको
 
जो वो अगर हमें चाहे मना भी सकती है
अकेले हमसे कहाँ होगा रोकना उसको
 
कि सोच में क्या रखें छोड़ना किसे चाहें
अजीब हाल है कुनबे में बाँधना उसको
 
उसे भुलाने क़वायद बहुत की होगी फिर
कहीं लगा भी तो होगा था रोकना उसको
 
मुझे अगर कभी चाहे मना ही लेगी वो
हाँ अब के छोड़ दिया रोज़ सोचना उसको
 
हुनर बहुत है जी उसमें वही परख़ लेती
कहाँ कसौटियों में रोज़ फ़ायदा उसको
 
उदास लम्हों को जीती है शान से बेहद
जवाब देने का आता है क़ायदा उसको
 
सानेहा= अजीब घटना

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