हमने गुज़ार दी जो यहाँ करवटों में रात

15-11-2025

हमने गुज़ार दी जो यहाँ करवटों में रात

सुशील यादव (अंक: 288, नवम्बर द्वितीय, 2025 में प्रकाशित)

 

मुज़ारे मुसम्मन अख़रब मकफ़ूफ़ महज़ूफ़
 
मफ़ऊल फ़ाइलात मुफ़ाईलु फ़ाइलुन
 
221    2121    1221    212
 
हमने गुज़ार दी जो यहाँ करवटों में रात
भारी मुसीबतों से भरी आहटों में रात
 
कब इत्मिनान से कभी सर आपका उठा
ज़ख़्मी मिला जनाब को बस हादसों में रात
 
है शोर ज़िन्दगी में ज़ियादा ही आजकल
ये ख़ामियाँ गिना रही है नफ़रतों में रात
 
मेरे जनाज़े को थी तिरे बाजु की तलब
कैसे बिताई इस दफ़ा बस उलझनों की रात
 
है ख़ैरियत चिराग़ तले भी उजाला है
ढूँढ़ो   शिकायतें यहाँ ग़ुम फाइलों  में रात

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