ख़ामोश हसरतों को मिटा कर चला गया

15-11-2025

ख़ामोश हसरतों को मिटा कर चला गया

सुशील यादव (अंक: 288, नवम्बर द्वितीय, 2025 में प्रकाशित)

 

मुज़ारे मुसम्मन अख़रब मकफ़ूफ़ महज़ूफ़
मफ़ऊल फ़ाइलात मुफ़ाईलु फ़ाइलुन
 
221    2121    1221     212
  
ख़ामोश हसरतों को मिटा कर चला गया
वो ज़िन्दगी धुँए में उड़ा कर चला गया
 
था साथ छोड़ना भी ग़वारा किया तभी
बा-क़ायदा नज़र से गिरा कर चला गया
 
नफ़रत की आग थी लगी उसके भी दिल कहीं
जंगल की आग रोज़ बुझा कर चला गया
 
मंज़र मैं भूलता क्या तबाही हुई कभी
दीवार दोस्ती की गिरा कर चला गया
 
थे मुन्तज़िर कई दिनों से जानने को हम
वो फ़ैसला घड़ी में सुना कर चला गया
 
राहत गिराने आया था बस्ती में बाढ़ की
बस नाम से अँगूठा दिखा कर चला गया
 
हमको मदद हज़ार खुले हाथ से मिले
वो रहनुमा था लाख लुटा कर चला गया

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