हम पल-पल चुक रहे हैं

15-11-2020

हम पल-पल चुक रहे हैं

महेश रौतेला (अंक: 169, नवम्बर द्वितीय, 2020 में प्रकाशित)

हम पल-पल चुक रहे हैं
शिखर से गिर रहे हैं,
नदी समान बह रहे हैं
जंगल सा कट रहे हैं।
 
हमारी माँगे पूरी नहीं हुयी हैं
प्यार के क्षण अनछुये रह गये हैं,
कुछ पाने की आशा में
हम धीरे-धीरे चुक रहे हैं।
 
उधार जितना किया है
उसे चुका नहीं पाये हैं,
अपनी लौ के साथ प्रज्वलित
विलीन होते जा रहे हैं।
 
हमारी कुछ रेखाएँ
बदलती जा रही हैं,
हड्डियों के जाल में
मौन थकान घुसती जा रही है।

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