शिष्टाचार के बहाने (रचनाकार - सुशील यादव)
लेखक की कृतियाँ
- ग़ज़ल
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- अन-मने सूखे झाड़ से दिन
- अपनी सरकार
- अवसर
- आजकल जाने क्यों
- आज़ादी के क्या माने वहाँ
- इतने गहरे घाव
- इश्तिहार निकाले नहीं
- उन दिनों ये शहर...
- एतराज़ के अभी, पत्थर लिए खड़े हैं लोग
- कब किसे ऐतबार होता है
- कभी ख़ुद को ख़ुद से
- कामयाबी के नशे में चूर हैं साहेब
- कितनी थकी हारी है ज़िन्दगी
- किन सरों में है . . .
- कुछ मोहब्बत की ये पहचान भी है
- कोई जब किसी को भुला देता है
- कोई मुझको शक ओ शुबहा नहीं रहा
- कोई सबूत न गवाही मिलती
- गर्व की पतंग
- छोटी उम्र में बड़ा तजुर्बा.....
- जब आप नेक-नीयत
- जले जंगल में
- जिसे सिखलाया बोलना
- तन्हा हुआ सुशील .....
- तुम नज़र भर ये
- तू मेरे राह नहीं
- तेरी दुनिया नई नई है क्या
- तेरे बग़ैर अब कहीं
- दर्द का दर्द से जब रिश्ता बना लेता हूँ
- दायरे शक के रहा बस आइना इन दिनों
- देख दुनिया . . .
- बचे हुए कुछ लोग ....
- बस ख़्याल बुनता रहूँ
- बस ख़्याले बुनता रहूँ
- बादल मेरी छत को भिगोने नहीं आते
- बिना कुछ कहे सब अता हो गया
- बुनियाद में
- भरी जवानी में
- भरी महफ़िल में मैं सादगी को ढूँढ़ता रहा
- भरे ग़म के ये नज़ारे समझ नहीं आते
- माकूल जवाब
- मिल रही है शिकस्त
- मुफ़्त चंदन
- मेरे शहर में
- मेरे सामने आ के रोते हो क्यों
- मेरे हिस्से जब कभी शीशे का घर आता है
- मेरे क़द से . . .
- मैं सपनों का ताना बाना
- यूँ आप नेक-नीयत
- यूँ आशिक़ी में हज़ारों, ख़ामोशियाँ न होतीं
- यूँ भी कोई
- ये है निज़ाम तेरा
- ये ज़ख़्म मेरा
- रूठे से ख़ुदाओं को
- रोक लो उसे
- रोने की हर बात पे
- वही अपनापन ...
- वही बस्ती, वही टूटा खिलौना है
- वादों की रस्सी में तनाव आ गया है
- वो जो मोहब्बत की तक़दीर लिखता है
- वो परिंदे कहाँ गए
- शहर में ये कैसा धुँआ हो गया
- समझौते की कुछ सूरत देखो
- सहूलियत की ख़बर
- साथ मेरे हमसफ़र
- सफ़र में
- हथेली में सरसों कभी मत उगाना
- क़ौम की हवा
- ग़ौर से देख, चेहरा समझ
- ज़िद की बात नहीं
- ज़िन्दगी में अँधेरा . . .
- ज़िन्दगी में अन्धेरा
- ज़िन्दा है और . . .
- ज़ुर्म की यूँ दास्तां लिखना
- सजल
- नज़्म
- कविता
- गीत-नवगीत
- दोहे
-
- अफ़वाहों के पैर में
- चुनावी दोहे
- दोहे - सुशील यादव
- पहचान की लकीर
- प्रार्थना फूल
- माँ (सुशील यादव)
- लाचारी
- वर्तमान परिवेश में साहित्यकारों की भूमिका
- सामयिक दोहे – 001 – सुशील यादव
- सामयिक दोहे – 002 – सुशील यादव
- साल 20 वां फिर नहीं
- सुशील यादव – दोहे – 001
- सुशील यादव – दोहे – 002
- सुशील यादव – दोहे – 003
- सुशील यादव – दोहे – 004
- हास्य-व्यंग्य आलेख-कहानी
-
- अपना-अपना घोषणा पत्र
- अवसाद में मेरा टामी
- आँकड़े यमराज के
- आत्म चिंतन का दौर
- आसमान से गिरे...
- एक छद्म इंटरव्यू
- एक झोला छाप वार्ता......
- एक वाजिब किसान का इंटरव्यू
- गड़े मुर्दों की तलाश......
- चलो लोहा मनवायें
- जंगल विभाग
- जो ना समझे वो अनाड़ी है
- डार्विन का इंटरव्यू
- तुम किस खेत की मूली हो?
- तू काहे न धीर धरे ......।
- दाँत निपोरने की कला
- दिले नादां तुझे हुआ क्या है ...?
- दुलत्ती मारने के नियम
- नन्द लाल छेड़ गयो रे
- नया साल, अपना स्टाइल
- नास्त्रेदमस और मैं...
- निर्दलीय होने का सुख
- नज़र लागि राजा. . .
- पत्नी का अविश्वास प्रस्ताव
- पत्नी की मिडिल क्लास, "मंगल-परीक्षा"
- पीर पराई जान रे ..
- प्रभु मोरे अवगुण चित्त न धरो
- बदला... राजनीति में
- भरोसे का आदमी
- भावना को समझो
- मंगल ग्रह में पानी
- मेरी विकास यात्रा. . .
- रायता फैलाने वाले
- विलक्षण प्रतिभा के -लोकल- धनी
- सठियाये हुओं का बसंत
- सबको सन्मति दे भगवान
- साहब पॉज़िटिव हो गए
- सिंघम रिटर्न ५३ ....
- कविता-मुक्तक
- पुस्तक समीक्षा
- विडियो
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- ऑडियो
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