लक्ष्य का हमको पता नहीं, पतवार लिए हैं
हम गांधारी के बेटों जैसा, संस्कार लिए हैं
हम बेच कहाँ पाते हैं, ईमान टके भाव
अपने-अपने मन का सब, बाजार लिए हैं
भूख-ग़रीबी, हाशियों में भी विज्ञापित
यूँ आगामी कल का देखो, अख़बार लिए हैं
वे अहिंसा के पुजारी, किताबों में चले गए
बचे हुए कुछ लोग यहाँ, तलवार लिए हैं