जब आप नेक-नीयत, सुलतान हो गए
क़ानून के हर्फ़ सब, आसान हो गए
सब लोग पूछ-परख में ख़ामी गिना गये
एक हैं वही रूठे बस महमान हो गए
समझे नहीं जो सियासत के दाँव पेंच हम
हक़ छीनते किसी से, परेशान हो गए
कुनबा नहीं सिखा सकता बैर-दुश्मनी
नाहक़ ही लोग, हिंदु-मुसलमान हो गए
सहमे थे किसे समझा सकते बारहा
बेशर्म- लोग जाहिल - बदज़ुबान हो गए
एक हूक सी उठी रहती, सीने में हरदम
बाज़ार में पटक दिए, सामान हो गए
एक पुल मिला देता हमको, आप टूटकर
रिश्तों की ओट लोग, दरमियान हो गए