कहीं तो धब्बे दाग निकालो
इस बसंत में आग निकालो
जो अपनी मनमानी करते
उनकी अकड़ झाग निकालो
बेसुर होकर ढोल न पीटो
मधुर सुरों के राग निकालो
सोने को तमाम उम्र पड़ी है
अपना हिस्सा जाग निकालो
भीतर ज़हर कुछ काम न देगा
बेहतर बाहर नाग निकालो