जब भी लौटना, मिल के जाना

15-03-2021

जब भी लौटना, मिल के जाना

महेश रौतेला (अंक: 177, मार्च द्वितीय, 2021 में प्रकाशित)

जब भी लौटना, मिल के जाना
कुछ बातें, कुछ साँसें  ले जाना, 
कुछ प्यार के क़िस्से कह जाना
राहों से निकली मिट्टी दे जाना।
 
जब भी आना,  मिल के जाना
कुछ देश की, कुछ मही की कहना, 
विवश पात्रों को जीवन दे जाना, 
समय की धड़कन बन आना।
 
जब भी चलना,  मिल के जाना
शाश्वत सत्य कह के  जाना, 
कुछ लिखकर, कुछ सुन कर जाना
भाग्य भविष्य का बनकर आना।
 
कुछ सत्य के गुण ले कर आना
कुछ अटल फ़ैसले करके जाना, 
शब्दों का अद्भुत सत्य ले जाना
अपना स्नेह- सरल पता दे जाना।

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