पिताओं और पुत्रों की

पिताओं और पुत्रों की  (रचनाकार - प्रो. असीम पारही)

(अनुवादक: दिनेश कुमार माली )
अकेले रहना एक विकल्प

 

अकेले रहना एक विकल्प
पैतृक, आदिम, दृष्टि की नाप
अकेलापन आनंद का एक माप
अनवरत लालसा और यादों का संताप
ये सब बनाते हैं इसका कवच
कभी न आएँ किसी तरह की कोई आँच, 
चाहे क्यों न हो वे, वह कर्ण या हेमलेट के बाप
एकाकीपन में टिके हैं उनके वीर संकल्प। 
 
जाने के लिए तुम हो जाओ तैयार
मैं तुम्हारा हूँ—पल भर के लिए मन में आया विचार
या, क्या मेरे हो तुम? 
सामाजिक अहम अर्थात् जुनूनी अहम
स्वार्थी, उग्र और झूठ मधुर
मुझे तुम्हें अब कर देना चाहिए परित्यक्त
‘तज देना चाहिए तुम्हें’ मुझे लेनी चाहिए शपथ
जब तक नहीं छोड़ देता, तब तक सब व्यर्थ
जीवित रहते हुए नहीं दिखोगे अपने पथ
 
स्मृति होती है अनमोल उपहार
नीरव स्वभाव के अनछुए हार
अकेला होना शरारती समय का अनोखा उपचार
स्पष्ट उद्देश्य और कलात्मकता प्रचुर
 
मेरे प्यारे, मेरे दुश्मन
आओ, हम अपने उद्यम से जीवन में रहे प्रसन्न
क्या नहीं हो रहे है दर्शन, 
अनुपस्थिति है, प्रेम का अथाह समर्पण। 

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