पिताओं और पुत्रों की

पिताओं और पुत्रों की  (रचनाकार - प्रो. असीम पारही)

(अनुवादक: दिनेश कुमार माली )
सूर्य-जन्मा

काली धूल धूसरित नीरवता
तूफ़ान से पहले की ख़ामोशी
मँडराती विकृत वेदना
जीवन के चारों ओर
हर निराशा की पूर्व संध्या पर
राहगीर की जिधर जाती नज़र
उधर रेगिस्तान, नखलिस्तान, 
बारिश और बर्बादी चारों ओर। 
बाल, अभी नहीं हुए श्वेत
आँखें, अभी नहीं हुई निराश
प्रकृति पर केवल आश्रित
इकारस, अकेला सैनिक
 
डेडलस, मूक दर्शक
और मैं विकासशील युवक, 
मैं अपने वचन का पक्का, 
मैं अपने शत्रु से लूँगा पंगा
शिकार आज का
पसंदीदा बहिष्कृत
शूरवीर, मुकुट, ढाल, तलवार
कट्टर अपराधी
रखते शर्ते निराधार
आदतन देशद्रोही
पुनर्वास क्या पूछें! 
मृत्युंजय! 
फिर कभी मत करना ग़लती, 
लड़खड़ाना भी मत
कभी बख्शना भी मत
तुम्हारे पुत्र के आँसू
तुम्हारे सूर्य की आहें
विध्वंसक की माँगें
तेरे तीर, देते चेतावनी
तू देवता, तू अन्नदाता
तू प्रकृति, तू जन्मदाता। 

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