पिताओं और पुत्रों की


आज रात मैं लिखूँगा आँसुओं से कविता
क्योंकि तुम लौट आए हो राख के ढेर से, 
अनेक सालों के घिनौने परीक्षण के बाद
असंख्य स्मृतियाँ लिए, 
आज रात मैं जागता रहूँगा और मनाऊँगा प्रेमोत्सव
अभिनव तरीक़े से, यद्यपि गर्द से उत्पन्न
आज रात मैं रोऊँगा स्वस्थ होने की जंगली ख़ुशी में, 
अराजकता और जीवन के शोर-शराबे के मध्य, 
मेरे एकमात्र प्रेम! 
आज रात मैं अतीत में झाँकूँगा
धूल भरी दोपहर के बीच, सुनसान समय की आख़िरी रात, 
आज रात मैं याद करूँगा दक्षिण
दीर्घ साँसें लेते-लेते, विश्वास उमंग के साथ
फागुन की गरम हवाओं ने छीना हमारा श्वसन, 
 
आज रात तुम रहोगी मेरे पास
बेहतर होगा, अपने आलिंगन से कर दो मेरा सत्यानाश
पश्चात्ताप होता है एक प्रहार
भूतकाल के अनवरत आघातों से
हज़ार तीरों का शूल बेहतर
आज रात अवश्य मैं लूँगा वैराग्य, 
इस कृत्रिमता से, मेरे आभासी सत्य से, और कड़वे कंटकों से
मेरे दूर के साथी! तरसाएगी तुम्हारी तड़प
इससे पहले कि उगे वह रोता हुआ चंद्रमा
फिर देर से
उतर जाओ पौराणिक गहराई में अकेले
मैं, तुम और हमारा उज्ज्वल प्रेम
इसलिए प्रियतम, 
स्वागत करें हम अपने पुनर्जन्म का। 

<< पीछे : मनु-पुत्र आगे : शिखर पतन >>

लेखक की कृतियाँ

विडियो
ऑडियो

अनुवादक की कृतियाँ

साहित्यिक आलेख
पुस्तक समीक्षा
बात-चीत
ऐतिहासिक
कार्यक्रम रिपोर्ट
अनूदित कहानी
अनूदित कविता
यात्रा-संस्मरण
रिपोर्ताज

विशेषांक में