पिताओं और पुत्रों की

पिताओं और पुत्रों की  (रचनाकार - प्रो. असीम पारही)

(अनुवादक: दिनेश कुमार माली )
प्रेम और प्रतिशोध

 

प्रेम, दोपहर के सुदूर दर्द का विद्यालय
निष्पक्ष, पूर्ण क्रंदन का चिर-परिचय, 
युवा प्रेम इतिहास के घाव भरता समय
अंतहीन कहानी से कदापि नहीं विश्वासघात
बर्फ़ीली चकाचौंध से चमकते पर्वत
कभी नहीं माँगतीं इलाज ग्रीष्म पवन
बेशर्म तेज़ी से करती घूर्णन
क्रूर परिवर्तनशील मार्च का वयोवृद्ध जह्न, 
स्मृतियों का जुलूस-प्रदर्शन। 
 
तुम्हारा अंतहीन गवेषण
बड़े होने और बार-बार दावे की तुलन, 
कैच और मैच का अंधानुकरण, 
दूरदराज़ पिता, धनुष-बाण
हताश समय की किरण
मार्च के वृद्ध चंद्र पर करती प्रहार
तुम्हारी व्यथा-वेदना
पिता होने और बनने की, अति प्राचीन
तुम्हारी निरंतर कराह, निसंग जवान; 
स्वभाव-निहित प्रेम का स्वाभिमान
मायावी, कला-पसंद। 
 
तुम्हारे चाँद के पश्चात
साहसिक अभिनव प्रेम, 
पिता में पूँजीभूत
पहनता अनजान काव्यमयी जूता
लगाता समय-सागर में विचित्र गोता
अंत तक रहता मज़बूत
कैसे आगे लाए अतीत? 
बहाल करें गौरव-गीत
मेरे अभिमानी पुरुषत्व की
यह महाकाव्यिक जीत। 

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