पिताओं और पुत्रों की

पिताओं और पुत्रों की  (रचनाकार - प्रो. असीम पारही)

(अनुवादक: दिनेश कुमार माली )
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चाकू बना होता है काटने के लिए, 
चाहे जैसे काटो
न कि चाकूपने के सिद्धांत को बताने के लिए नहीं, 
जिसकी कोई थोथी भर्त्सना करता हो
धूर्त आकलन हेतु दूसरों से उधार लेकर
इसलिए मेरे प्रिय चंचल युवक
चाहे नायक के पास हो या केवल शून्य हो
चाहे दादी की गोद में हो
या दुश्मन के जाल में फँसे हो
चाहे मेरे पास हो या गुमनाम हो
चाहे स्वतंत्र हो या झल्ला रहे हो, 
अपने तेज चाकू को ठोकते रहो, घुमाते रहो
इस अभिशप्त जीवन में। 

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