पिताओं और पुत्रों की

पिताओं और पुत्रों की  (रचनाकार - प्रो. असीम पारही)

(अनुवादक: दिनेश कुमार माली )
निष्कासन

 

मेरे प्रियतम, 
पीछे मुड़ा जब मैं
इस दोपहर
सुनाई पड़ी पत्तियों की
भयंकर सरसराहट
अपने स्थान
मेरे प्रियतम, 
मैं चढ़ा पोत
इस दोपहर
दिखाई पड़े
वही पत्ते
तुम्हारी जगह
जो थे मेरे पास
वहाँ पहुँचकर जब मैं चढ़ा
पेड़ के शीर्ष पर
अनुभव किया मैंने
हमेशा से रो रहीं त पत्तियाँ
अंतरिक्ष के ख़ातिर, 
वह अंतरिक्ष
जो बना सकता है घर
तुम्हारा और मेरा
मेरा और तुम्हारा। 
मेरे प्रियतम, 
मैंने ले लिए वापस
अपने परिधान और व्यंजन
जो लाया था तुम्हारे लिए
खो गई तुम्हारी
उष्ण-शुष्क नगरी
हमेशा से देने वाली
क्रूरतापूर्ण धोखा
बरसात में मेरी मनपसंद पहाड़ी जगह
हाड़कंपी ठंड से
बचने के लिए बन गई आश्रय-स्थली
तुम्हारी हार्दिक इच्छा
तुम्हारे मुँह के बोल
चले गए तुम्हें त्यागकर। 
मेरे प्रियतम, 
मेरा प्रतिबिंब
भोला-भाला
बेहतर सहिष्णुता सहज
बजाय खीखीयाने के
तुम पर होगी
संसार की सीधी-पकड़
जल्दी से या देर से
इसलिए प्रिय, 
महान उत्तराधिकारी
पुकारता रगों का ख़ून
तुम्हें, मेरी ढाल
योग्य पूर्वजों की। 

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