पिताओं और पुत्रों की

पिताओं और पुत्रों की  (रचनाकार - प्रो. असीम पारही)

(अनुवादक: दिनेश कुमार माली )
दुर्योधन-पुत्र

 

क्या तुम नहीं हो दुर्योधन-सुत? 
अँधेरे में जन्मे, कल्पना-प्रसूत! 
सदी की आशा, असहनीय अतीत
देखो, स्वपन-भंग से हो जाए तुम्हारा चेहरा रंग-विहीन
इससे पहले, तट पर आए तुम्हारे अधरों से तूफ़ान
ओह, तुम बन गए कर्ण! धिक्-धिक्कार, मैं भाग्यहीन!! 
मेरे साम्राज्य के ख़ातिर तुमने पीया सारा विष, 
सँभालते हुए समय-कोष
मैं बना रहा अकर्मण्य पूर्ण, 
ठुकराकर अपना क्लिष्ट मरण
देखने को वह सिंहासन
देखी मैंने उस दिन
तुम्हारे चेहरे पर फिर से खिली मुस्कान, 
खंगालते हुए अनेक रात-दिन
करते ढेरों आह-क्रंदन
सुनी तुम्हारे नन्हें-नन्हें क़दमों की नाद
अनेक अनिद्रित रातों के बाद
उम्मीद में खोया माधुर्य-मिलन
और शारदीय आँसुओं में निमग्न
अनखोजे पत्र और शाब्दिक कम्पन
मैं नहीं भूलूँगा, स्वीकार करना नहीं आसान
युद्ध बिना नहीं करूँगा कभी समर्पण
न कभी नहीं करूँगा क्षमा-याचन। 

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