पिताओं और पुत्रों की

पिताओं और पुत्रों की  (रचनाकार - प्रो. असीम पारही)

(अनुवादक: दिनेश कुमार माली )
अविस्मरणीय समय

 

क्या भूला जा सकता वह समय? 
 
मेरी सुषुप्तात्मा को जगाने का समय
मेरी घोर तंद्रावस्था का समय
बारम्बार निर्णय लेने का समय
कोई अनिर्णित समय
कट्टर आदमी के अपरिवर्तनीय लक्ष्य
और अशेष अनंत संकल्पों वाला समय
अपने दुश्मनों के विध्वस्त देखने का समय
कुछ भूतिया शैतानों के स्थायी रूप से मौन होने का समय
 
चूँकि तपस्वी पिता के प्रारब्ध-कर्मों के फल
जब होने लगे क्षीण
तब जाकर मैंने ली प्रतिज्ञा, 
करने को अपहरण
आक्रमण और उन्मूलन
 
एक पदच्युत राजकुमार साधनविहीन
शक्ति-संचय हेतु बना मेज़बान
मगर भाग्य पराधीन
उसका विकृत चेहरा रंगहीन
प्रतिशोध से उबलता पागलपन
 
मेरे जैसा वीर हर दिन, 
नहीं झुकता, नहीं जाता मर
मेरे दुश्मनों के कर
 
लेकिन मेरा लक्ष्य सदा विजय
जाति-लिंग पर आधारित ग़ुलाम होते निर्दय
फैलाते अनेक अपराध जघन्य
क्या ऐसे होते हैं हमारे अतीत के महाकाव्य? 
 
एक, जिसने छीना महान धनुर्धर
दूसरा, जिसने जगाई रक्तिम प्यास नारी के उर
सभी पुरुषों को आकर्षित नहीं करती नारी सुंदर
भले सहस्र, मगर कोई नहीं छूएगा स्त्री-पामर
 
विवाह हो सकते हैं भ्रामक
प्रेमहीन, कड़वा, काल्पनिक
लुप्त जीवन का एकमात्र धावक
पुरुष-गरिमा का पुनरुद्धारक

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