पिताओं और पुत्रों की

पिताओं और पुत्रों की  (रचनाकार - प्रो. असीम पारही)

(अनुवादक: दिनेश कुमार माली )
कर्कश सुबह


आज की सुबह
भीगी-भीगी और दंभी घृण्य
स्वपनशील, सह-संवेदनजन्य
करती मेरा शयन-शून्य। 
पौराणिक और सांसारिक मायावी
स्वप्न-शृंखला का आलिंगन
एक सपने से हुए द्रवित
सूर्य और सूर्य-पुत्र। 

 मनुष्य और देवदूत
दोनों खेलकर द्युत-क्रीडा
लिखवाई अपनी नई क़िस्मत। 
पुराने के विपरीत, 
गूढ़-धूर्त
योजना से दूर
अन्यायी ईश्वर (? ) 
असामान्य बाह्य इंसान, 
अहंकारी तर्कहीन
उत्तरदायित्वहीन
वह धार्मिक भगवान। 
पूर्व में उदय होता वह देवता, 
पहला, वह एक पिता, 
धरती को चमकाता
और उसका पुत्र जन्म से इतिहास रचाता। 
साथ बैठकर दोनों ने
किया कलमबद्ध
अंतिम दिनों का
महाभारत युद्ध। 
सूर्य-पुत्र रश्मि-रथ पर हो विराजमान
स्वयं को धर्म-योद्धा घोषित कर दहाड़ा प्रचंड
दूसरा, पलायन कर गए दुश्मन
सामना करते मेरी नील-किरण
और दोनों ने किया
पांडुलिपि–लेखन
बैठकर पार्श्ववर्ती चट्टान
नई कविता
नया महाकाव्य
तले नीले भाग्य
दो योद्धा
दो विजेता। 

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