पिताओं और पुत्रों की

पिताओं और पुत्रों की  (रचनाकार - प्रो. असीम पारही)

(अनुवादक: दिनेश कुमार माली )
दक्षिणी पवन

 

यहाँ दक्षिण था, यहाँ पवन थी
जहाँ मैंने छुआ था एक बार तुम्हारा घुँघराला अतीत
जब तुम्हारी लजाती याचना में खिला था एक अकेला पुष्प
और शुरू हुई शरद ऋतु
हम मिले और बिछुड़े
वर्षों की आह और समय की कराह को पीछे छोड़ते हुए
 
अपनी जड़ों से मिलकर प्रफुल्लित हुई पृथ्वी
और आने लगी बारिश की सौंधी गंध
उपहार में मिला तीर मारा उस पर
 
जिसे मैंने किया था अर्जित
भाग्य के खंडहरों से अंकुरित होने लगा जीवन
विलंब के सिंहासन से नीचे उतरकर और नीचे आया चंद्रमा
अमर प्रतीक्षा में
तुम्हारे धैर्य के नवीन ताज की
अभिमानी पुरुष! तुम हो अजेय
पुत्र होते हैं अभिशप्त पिता
स्वर्ग में जन्मे, मृत्युंजय विद्या में धुरंधर
उस अँधेरे तट पर जागते हुए
फिर भी सूर्य-पुत्र अभी तक माताओं के लिए बोझ है? 
 
मनुष्य के पहले और दूसरे जन्म के
सहस्र वर्षों से अभी तक अजन्मा
पौराणिक महिमा और भाग्य पथ। 

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