पिताओं और पुत्रों की

पिताओं और पुत्रों की  (रचनाकार - प्रो. असीम पारही)

(अनुवादक: दिनेश कुमार माली )
प्यार की दासता

 

बेहतर होगा—
प्यार बनाए राख को अपना घर
और धू-धू जलता रहे अंतिम अंगार
फिर भी मैं गाऊँगा गीत
और दूँगा आशीर्वाद अनंत। 
 
प्रेम होता है—
स्मृतियों का पश्चाताप
अपरिहार्य, ज्वलंत समय का तीव्र ताप
बेहतर होगा, बन जाऊँ मैं कट्टर असभ्य
और रहूँ अपने अतीत निवास या करूँ उज्ज्वल भविष्य। 
 
मुझे आवश्यकता है—
प्रतिबिंबन, समाधान, निर्माण
अवश्यंभावी, मृत्यु का संयोजन
बिना हुए पथ-विचलन
और अपने दूर के साथी का जागरण
क्योंकि याद बची हुई है हर धड़कन
 
मैं बेहतर तरीक़े से जीना चाहता हूँ—
प्रेम की दासता
पृथ्वी की सीमा
और भाग्य का संकट
देता धूमाभ्र और तंद्रानन्द
पुनरागमन या अचानक स्मृति? 
 
आज रात मैं नहीं लिखूँगा—
अश्रुल कविता
पर मनाऊँगा शोक, करूँगा विलाप
प्रवाहित कर दूँगा मानवता, 
खुरदरे भय, कोरोनेट प्यार
और करूँगा जयकार। 

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