पिताओं और पुत्रों की

पिताओं और पुत्रों की  (रचनाकार - प्रो. असीम पारही)

(अनुवादक: दिनेश कुमार माली )
पिता के रोम-रोम

मुस्कुराते हैं पिता के रोम-रोम में
पुत्र का भोलापन, 
आँखों में जलन, 
बिखरे बालों में उलझन, 
जैसे नवजात मूर्तिमान, 
हृदय में काव्य-कंपन, 
भाग्य में समरांगन, 
मेघवत परिवर्तन, 
कलावत पागलपन, 
पर्वत-सम-सीधापन, 
धरणी जैसा द्युतिमान, 
क्षुद्र आत्मा के प्रशांत महासागर में तूफ़ान। 
 
पिता के ख़ातिर वह हो रहा आबाद, 
करते पौराणिक शंखनाद, 
आजीवन अनुसंधान, 
पिता से पैदा हुआ तत्व-प्रधान, 
उठो, जागो, तुम
अपने पिता के रोम-रोम। 

आगे : समय का शरणार्थी >>

लेखक की कृतियाँ

विडियो
ऑडियो

अनुवादक की कृतियाँ

साहित्यिक आलेख
पुस्तक समीक्षा
बात-चीत
ऐतिहासिक
कार्यक्रम रिपोर्ट
अनूदित कहानी
अनूदित कविता
यात्रा-संस्मरण
रिपोर्ताज

विशेषांक में