पिताओं और पुत्रों की

पिताओं और पुत्रों की  (रचनाकार - प्रो. असीम पारही)

(अनुवादक: दिनेश कुमार माली )
मौन

 

नीरवता और समझौता
बेचारे ख़ुद को आहत करने वाली मुद्रा
सांकेतिक सौंदर्यशास्त्र, गवाही देने के लिए उत्पन्न
परित्यक्त चाँद का मौखिक साक्षी
 
एक पीड़ादायक रहस्य
एक भँवर जाल
और जटिल मुस्कान
 
धुँधले विचारों के भूरे पल
 
महानता होती बिरल
मिलती एक बार या फिर कभी नहीं
देव-प्रदत्त कलाकार
मानवता, आत्म-मुग्धता
मूक प्रकृति के अकेले कार्यकर्ता
 
अलग रास्ता अपनाने पर
हाँफते-हाँफते दो अकेले नर
हारकर गए बिखर
और छोड़ दिया सपने देखना? 
 
‘महानता’ है एक विडम्बना
सुनियोजित मौत के संग
पागलपंथी सत्यान्वेषी भग्नावशेष
 
जहाँ सभी विश्रांत
 
शुभकामनाएँ तुम्हारी
महानता का करती अभिवादन
कीर्ति-स्तम्भ
तुम्हारे तट। 

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