पिताओं और पुत्रों की

पिताओं और पुत्रों की  (रचनाकार - प्रो. असीम पारही)

(अनुवादक: दिनेश कुमार माली )
हत्या

 

प्रति दिन, 
प्रति पल
प्रति निमिष
क्रूर कराल कटार
करती है हत्या
मेरी नीली आत्मा, 
गुलाबी हृदय
लाल विचारों की। 
सुबह की नैसर्गिक पुकार
रात की अशांत उठापटक
शेली के जीवन कंटक! 
या कीट्स के शोक-संगीत? 
टायर्सियन जल्लाद
आगे बढ़ता है क़दम-क़दम
और मारता है रत्ती-रत्ती भर
हर तरफ़ चुभने वाली सूई
और फिर तुर्की खेलकूद। 
मैं, 
मेरी दूसरी, 
निर्दोष मुस्कान
और आँसुओं का प्रवाह
महत्वाकांक्षा और उत्साह
सपने और अज्ञानता
मेरी और उसकी चीत्कार
फँसे हुए काले हाथ
समय से लेकर
अंतरिक्ष तक। 
हत्यारा विद्यमान हर क्षण, 
अनुपस्थिति में मेरे साथ करता शयन
एक हत्या जो मुझे रखती है जीवित
करने को
मृत्यु के बाद मृत्यु का विचार
घाव के बाद घाव
बनाने और फोड़ने के लिए
दमघोंटू नीरवता
ऐतिहासिक दुश्मन
मेरी नीली आत्मा और गुलाबी हृदय की
हत्यारिन।

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