1.
सुनो, मेरी कुँवारी माँ
आख़िर तुमने मेरी गहरी नींद में
पाई मुझसे मुक्ति
याद है न?
मैं जाग रहा था उस अंधकार,
चारों तरफ़ स्थिर,
मगर अशांत नदी का हाहाकार
प्रिय हृदय से नहीं अति दूर
नरम हाथों के लिए सशक्त
चारों ओर देखकर
करने लगा रुदन
पाने को भोजन,
भयभीत होकर
खोज रही थी मेरी उँगलियाँ निरंतर
मानव मांस का छुअन . . .
तुम कहाँ थी?
और उसके बाद
एकत्रित हुए अनेक अमानुष
जल-तरंगें, खतपतवार, पवन-वर्षा,
मेरे जनक, अश्रुल दिनकर,
और प्रकृति, मेरी इकलौती माँ
जिसने किया मेरा पालन-पोषण
चेहरे पर खिली
प्यार-दुलार की मुस्कान
तब से
जाग रहा हूँ मैं
सारी रात, सारे दिन
इसलिए मैं, उस पिता का पुत्र
करूँगा सर्वनाश
क्यों दिए मेरी महिमा-मंडन के लिए कवच?
क्यों सौंपे प्राणों की सुरक्षा के लिए मुझे कुंडल?
क्यों बख्शा मैंने तुम्हारे पाँचों पांडवों को?
क्यों उस असभ्य नारी ने चालाकी से हरा मेरा मन?
क्यों दिया मैंने उन ग़ुलामों को जीवन-दान?
क्यों नहीं किया मैंने अपने महान पूर्वजों का अनुकरण?
क्यों वह चिंगारी और वह बलिदान?
किस चीज़ का अहंकार?
क्यों वह एकांत वास?
क्यों दिव्यता का अभाव?
क्यों लड़खड़ाहट?
क्यों व्यर्थ महानता?
क्यों अकेलेपन के शिकार?
मैं, महानतम
मैं, श्रेष्ठतम
मैं, रहस्यमयी धनुर्धर,
फिर भी बनाता जनता को मूर्ख,
सैनिकों को देता अभिशाप
फिर क्यों पश्चाताप?
राजकुमार का विरोध?
बने रहो मानव
तुम हो मेरी सर्वोच्च कलाकार।
2.
क्यों फेंका तुमने मुझे
घुप्प अँधेरे में,
बहती नदी की
गरजती लहरों की
तीव्र धाराओं के मध्य
जीवन के निस्संग पथ पर?
क्या तुमने कभी सोचा
डूब सकता हूँ मैं
जन्मजात नायक होकर भी?
मेरी जादूई ढाल में
बसते हैं मेरे पिता
मेरे कानों में बजता उनका संगीत
मेरे आहत हृदय पर मरहम लगाने वाले पिता
उनकी अनुभूति
मेरे रक्षक, मेरे शिक्षक
और तुम मेरी माँ, मेरी क़ातिल
परशुराम, मेरे प्रशिक्षक
दुर्योधन, मेरे उद्धारक
और तुम! स्वार्थी माँ!
क्यों किया तुमने पक्षपात?
इसलिए, नहीं दूँगा उपहार
तुम्हें मेरे हथियार
तुम मेरी निर्दयी माँ।
विषय सूची
- पिता के रोम-रोम
- समय का शरणार्थी
- पुत्र से पिता
- जियो मानव, जियो!
- एक और फरवरी
- गगन-प्रकृति
- आहत विचार
- विश्वासघात
- मृत्यु के बाद की लंबी कविता
- प्यारी माँ
- मेरे पिता के लिए
- उदासी
- फिर से आना
- पितृहीन
- आत्महत्या के शोकगीत
- मैं पीने वाला
- प्रेमी
- पौ फटने से ठीक पहले
- सूर्य-जन्मा
- राजकुमार हेमलेट
- पिता होते हुए पुत्र तनाव में!
- अभिमान
- क्या पिता एक मज़ाक है?
- मेरा चंद्रिल प्रेम
- यात्रा
- पुनरागमन
- प्रतिशोध
- हठी
- पूर्णिमा की ज्योत्स्ना में भीगी कविता
- माता
- पत्नी
- कौन कहता है कि तुम भगवान हो?
- दुर्योधन का उत्तर
- मौन
- आत्म-हत्या
- दक्षिणी पवन
- दुर्योधन-पुत्र
- इतिहास का बोझ
- अंतर्द्वंद्व
- त्रिवेणी
- मैं यहाँ हूँ
- तुम और मैं
- कर्कश सुबह
- एकजुटता का अंश
- निष्कासन
- मदलाशी
- जब मैं तुमसे प्यार करता हूँ
- मृत्युंजय
- हत्या
- जब तुम चले जाओगे
- हम
- अकेले दिन
- साँसों में जन्म-स्थान
- प्रेम और प्रतिशोध
- आगमन
- स्थितप्रज्ञ
- अविस्मरणीय समय
- मैं तुमसे यही चाहता था
- शर-शैय्या
- रात और गृह-विरह
- अभी भी नरक
- मनु-पुत्र
- आज रात मैं लिखूँगा आँसुओं से कविता
- शिखर पतन
- प्यार की दासता
- शरद ऋतु में सितंबर
- अकेले रहना एक विकल्प
- पिताओं और पुत्रों की
लेखक की कृतियाँ
अनुवादक की कृतियाँ
- साहित्यिक आलेख
-
- अमेरिकन जीवन-शैली को खंगालती कहानियाँ
- आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी जी की ‘विज्ञान-वार्ता’
- आधी दुनिया के सवाल : जवाब हैं किसके पास?
- कुछ स्मृतियाँ: डॉ. दिनेश्वर प्रसाद जी के साथ
- गिरीश पंकज के प्रसिद्ध उपन्यास ‘एक गाय की आत्मकथा’ की यथार्थ गाथा
- डॉ. विमला भण्डारी का काव्य-संसार
- दुनिया की आधी आबादी को चुनौती देती हुई कविताएँ: प्रोफ़ेसर असीम रंजन पारही का कविता—संग्रह ‘पिताओं और पुत्रों की’
- धर्म के नाम पर ख़तरे में मानवता: ‘जेहादन एवम् अन्य कहानियाँ’
- प्रोफ़ेसर प्रभा पंत के बाल साहित्य से गुज़रते हुए . . .
- भारत के उत्तर से दक्षिण तक एकता के सूत्र तलाशता डॉ. नीता चौबीसा का यात्रा-वृत्तान्त: ‘सप्तरथी का प्रवास’
- रेत समाधि : कथानक, भाषा-शिल्प एवं अनुवाद
- वृत्तीय विवेचन ‘अथर्वा’ का
- सात समुंदर पार से तोतों के गणतांत्रिक देश की पड़ताल
- सोद्देश्यपरक दीर्घ कहानियों के प्रमुख स्तम्भ: श्री हरिचरण प्रकाश
- पुस्तक समीक्षा
-
- उद्भ्रांत के पत्रों का संसार: ‘हम गवाह चिट्ठियों के उस सुनहरे दौर के’
- डॉ. आर.डी. सैनी का उपन्यास ‘प्रिय ओलिव’: जैव-मैत्री का अद्वितीय उदाहरण
- डॉ. आर.डी. सैनी के शैक्षिक-उपन्यास ‘किताब’ पर सम्यक दृष्टि
- नारी-विमर्श और नारी उद्यमिता के नए आयाम गढ़ता उपन्यास: ‘बेनज़ीर: दरिया किनारे का ख़्वाब’
- प्रवासी लेखक श्री सुमन कुमार घई के कहानी-संग्रह ‘वह लावारिस नहीं थी’ से गुज़रते हुए
- प्रोफ़ेसर नरेश भार्गव की ‘काक-दृष्टि’ पर एक दृष्टि
- वसुधैव कुटुंबकम् का नाद-घोष करती हुई कहानियाँ: प्रवासी कथाकार शैलजा सक्सेना का कहानी-संग्रह ‘लेबनान की वो रात और अन्य कहानियाँ’
- सपनें, कामुकता और पुरुषों के मनोविज्ञान की टोह लेता दिव्या माथुर का अद्यतन उपन्यास ‘तिलिस्म’
- बात-चीत
- ऐतिहासिक
- कार्यक्रम रिपोर्ट
- अनूदित कहानी
- अनूदित कविता
- यात्रा-संस्मरण
-
- पूर्व और पश्चिम का सांस्कृतिक सेतु ‘जगन्नाथ-पुरी’: यात्रा-संस्मरण - 2
- पूर्व और पश्चिम का सांस्कृतिक सेतु ‘जगन्नाथ-पुरी’: यात्रा-संस्मरण - 3
- पूर्व और पश्चिम का सांस्कृतिक सेतु ‘जगन्नाथ-पुरी’: यात्रा-संस्मरण - 4
- पूर्व और पश्चिम का सांस्कृतिक सेतु ‘जगन्नाथ-पुरी’: यात्रा-संस्मरण - 5
- पूर्व और पश्चिम का सांस्कृतिक सेतु ‘जगन्नाथ-पुरी’: यात्रा-संस्मरण - 1
- रिपोर्ताज