पिताओं और पुत्रों की

पिताओं और पुत्रों की  (रचनाकार - प्रो. असीम पारही)

(अनुवादक: दिनेश कुमार माली )
विश्वासघात

मैंने देखा बसंत
जब मैं जा रहा था सायंकालीन भ्रमण किसी एकांत
अचानक खड़खड़ाई कुछ यहाँ पत्ते-पत्तियाँ
आधी-अधूरी इच्छायुक्त
पास आने के लिए आतुर
जब उगा चाँद आधे-रास्ते
इस उम्मीद के संग, 
 
कि छोटे सितारे कर सकें इसे अनुभूत, 
चमकीले हाथ कर न पाएँ कोई विश्वासघात
भले ही, दूर हो रहे चाँद-सितारे अनवरत
फिर भी मिलन हेतु लालायित
देर से ही सही, जीवन के अलसाए उत्तरार्द्ध में
जब मुझे लगी इसकी भनक
जिसने चुराया मेरा ज्ञान
और चूका दक्षिणी पवन का असहज आलिंगन
दूर की किसी विचार-तरंग पर
निस्तब्ध शाम हिलराती अशांत पवन
हमारे अंतर्निहित प्रेम की शुरूआत और अंत
मैं बना साक्षी
स्मृति-विभ्रंश और आत्म-परित्यक्त
तुम्हारे साथ विश्वासघात करने के लिए, 
विगत कल, आज
और एक अविश्वासी भविष्य का। 

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