पिताओं और पुत्रों की

पिताओं और पुत्रों की  (रचनाकार - प्रो. असीम पारही)

(अनुवादक: दिनेश कुमार माली )
मृत्यु के बाद की लंबी कविता

अपठनीय, अगम्य
दूरी तय करने के लिए
काग़ज़ी विमान, हेलिकॉप्टर और बदलती ट्रेनें
जिसे तुमने उकेरा था
एक महीने पहले! 
तुम्हारी पतली उँगलियाँ और स्पष्ट पूर्वावलोकन
सीधी रेखाएँ
मीलों पार
पन्नों से गुज़रती
दौड़ती प्रार्थनाएँ
जिसे आँका था तुमने
प्रेम के अभाव में
तुम्हारे केश-कीर्तन
हज़ारों ‘अगर-मगर’ के बाद
मुझ तक पहुँचने के लिए
मुझे सिखाने के लिए
मुझे उपदेश देने के लिए . . . 
परशुराम के शिष्यों, 
निःस्वार्थ वफ़ादारों
महान राजभक्तों
मगर द्रोण के . . .? 
लाड़-दुलार में आंशिक पक्षपाती, 
तुच्छ, तंग-हाल, शरारती, 
और दूसरा सबक़ सीखाने से
बर्बाद हो गया एक प्रशिक्षक—
जिसे बचाने का किया दावा
फिर भी केवल अटका रहा
अधर्म और स्वधर्म में
चोरी सिखाते
गोपियों के परिधान
या नायकों के कंटक
उदासीन मुस्कान
निरंकुश अभिनय
सदैव अजेय सत्य-संग्राम
स्वघोषित, अनैतिक
लड़ा गया युद्ध
सड़ांध साम्राज्य
मूर्ख पाठक
अक्खड़ दर्पण
क्यों दोषारोपण
धृतराष्ट्र-पुत्र के नाम? 
बल्कि खोजों वृंदावन के अरण्य
फासीवादी माताओं के युग में
जातिवादी शासकों की दौड़ में

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