पिताओं और पुत्रों की

पिताओं और पुत्रों की  (रचनाकार - प्रो. असीम पारही)

(अनुवादक: दिनेश कुमार माली )
शर-शैय्या

 

सद्कर्मों के प्रति मानव की पहली आज्ञाकारी दासता
मैं कहता हूँ—झेल रही पहली और अंतिम त्रासदी मानवता। 
जिसने की सेवा, उसे मिला सिंहासन का मेवा, 
जिसके हटे पाद पीछे, वह हुआ गुमनाम देवा
मैं बताऊँगा, 
मेरा मन, मेरा प्रबल जुनून
और अंतर्द्वंद्व में उलझा दुर्योधन
मैं बताऊँगा, 
कैसे अकेले योद्धाओं ने पाई विजय
प्रतिकूल परिस्थितियों वाले समय
युगों-युगों तक
शर-शैय्या, सहस्र भाले
निःस्वार्थ बलिदान, भेदक शब्द
प्रेम जैसे मानसून की बूँद
अधिक पीड़ादायक, कम सुखद
पूर्वी पवन, देर रात का अशांत ध्यान
अतीत का अहंकार, अभ्रंशित कहानी
लुप्त वैभव, अभी तक नहीं अनसुनी
दृष्टिकोण जैसे सावन महीने का वर्षण
सदैव आहत, फिर भी विशाल, उग्रसेन
सदैव उत्साहित, महाकाव्य सामरिक विवेचन। 

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