पिताओं और पुत्रों की

पिताओं और पुत्रों की  (रचनाकार - प्रो. असीम पारही)

(अनुवादक: दिनेश कुमार माली )
आहत विचार

मेरे प्रिय
पुत्र कर्ण! 
जब तुम आराधना करो
किसी देवी-देवता की, 
देखना, 
कहीं उन्हें बलि तो नहीं चढ़ाई जाती
ध्यान रखना, 
कहीं उनकी दृष्टि
दूर से रंभाते-अकुलाते
दुधमुँहे मासूम नन्हे बछड़ों पर तो नहीं हैं। 
उन्हें अभिशाप देते हुए समझाना
पशुबलि—पूजा मिथ्या है। 
क्या कभी कोई देवी ख़ून पी सकती है? 
ओह! उनके ख़ून-सनी कटार से
क्या मिलता है आशीर्वाद
या आती है आँसुओं की बाढ़? 
इसलिए मेरे
प्रिय पुत्र
किसी भी मांसाहारी देवता
की पूजा मत करना। 

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