पिताओं और पुत्रों की

पिताओं और पुत्रों की  (रचनाकार - प्रो. असीम पारही)

(अनुवादक: दिनेश कुमार माली )
अभी भी नरक

 

केवल इसलिए कि मैं नर्क में अभी भी हूँ
मतलब यह नहीं है कि मुझे नहीं है स्वर्ग की आकांक्षा
या रोक दूँ किसी कायर पशु पर हँसना, 
याद है मुझे अपनी शिष्टता
जो डूबकर अंधकार
बुनती है विचार, 
नष्ट हो जाती फिर भी
आह भरने से पूर्व नहीं, 
आह जिसमें वायदा है
और वर्तमान कमियों का बहिष्कार
वे कहते हैं, महान लोग इतिहास में अमर, 
संख्याओं में, शिलालेखों में
मगर मुझे अच्छा लगता है
अँधेरे में चुपचाप लेटना
अभाव के माधुर्य में अतीत पर
रोना है व्यर्थ
इसलिए मैंने खाई हैं सौगंध
बना रहूँ कुछ शांत
जब तक इस धरती से आडंबर, पाखंड
और मूर्खों का बोझ ख़त्म न हो जाए। 

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