पिताओं और पुत्रों की

पिताओं और पुत्रों की  (रचनाकार - प्रो. असीम पारही)

(अनुवादक: दिनेश कुमार माली )
पुनरागमन

मुझे खींच लाई
मेरे मूल-स्थान की हरीतिमा
चिढ़ाते मेघों की कालिमा
उनकी वेश्यावृत्ति-यात्राएँ और जून की ग्रीष्म
पैतृक आँधी-तूफ़ान, तोड़ते हृदय-सीमा
क्या है जीवन
यदि नकारता अपकर्षण
क्या है मन
यदि प्रेम-विहीन, संवेदनहीन जीवन
स्मृति होती है शर्मीली कुँवारिन
भले ही, कम विद्यमान, मगर ज़्यादा वफ़ादार
गिरगिटी भाग्य का अभिमानी अनुमोदन
विचित्र कलात्मक, मानसूनी गगन का अद्भुत आकर्षण
कलाकार और सौन्दर्य-विज्ञान
आशावादिता के शिकार
अवशिष्ट इस संसार
पहने नियति के मंगल-सूत्र
रेंगते मस्तिष्क और
विश्वास के जटिल क्रूर-बंधन
जिसके साँसों का दोहरापन
करता अस्तित्व-अनुसंधान
और सहता सौहार्द कायरपन
बनाए रखने के लिए
अभिमानी धरिणी की क़तारबद्ध संतान
‘मैं’ जो नकारता
हर ‘अन्य’ को, 
वह अधिकांश प्रकृति का रहस्य, 
अस्थिरता करती अति विनाश
और भस्म करती मायावी अहंकार
एक नई शुरूआत और सच की यात्रा
इसलिए, युवाओं, 
अपने को सशक्त बनाने के लिए
बुनो सपने पाने को असंख्य ज्ञान
आत्मा का भोजन, 
प्रेम और उसका सर्वोच्च उत्थान। 

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