पिताओं और पुत्रों की

पिताओं और पुत्रों की  (रचनाकार - प्रो. असीम पारही)

(अनुवादक: दिनेश कुमार माली )
स्थितप्रज्ञ


सभी निर्णयकर्ता
होते हैं सनकी
न केवल स्वयं के प्रति
बल्कि दूसरों के लिए भी
श्रेय देना या दोषारोपण
करता है निर्भर
उनकी मनोदशा पर
उनकी दया पर
या उनके अपरिपक्व विवेक पर
जैसे दुर्योधन
वैध राजकुमार, महान राजन
बिना किसी सहायता या धर्मपिता के आशीर्वचन
देखने लगा स्वप्न
एक सेनापति, एक शिक्षक और एक बंधुजन
कर्तव्य-प्रतिबद्ध, निःस्वार्थ मन
भीष्म नहीं मारेंगे अर्जुन
युधिष्ठिर के शुभचिंतक द्रोण
कुंती को नाराज़ नहीं करेंगे कर्ण
भले ही, उनके राज्य का हो जाए पतन
पर अपराजेय तीनों जन! 
वे सभी, जो अकेले करते है मुक्त-चिंतन
वे सभी, भाग्य के अधीन
अवश्य, फिर भी बेईमान
अपने न्याय पर करना शासन
वास्तव में चुनौतीपूर्ण
विवेकवान के लिए भी नहीं सहजपन। 
दोहराता मैं आस्था असामान्य वातावरण
सीधे खड़े होकर देता विफलताओं को सांत्वना
मर्माहत राजकुमारों का पौराणिक अवलंबन
हठधर्मी, तपस्वी, छद्म संतजन
मेरा सत्य प्राचीन पन्नों में दफ़न
शांत, जिज्ञासु और उग्र क्रोधपन
लड़ने के लिए अकेले स्तम्भ बन
आत्मविश्वासपूर्ण मन ही मन
वृत्ति से जीवन
या दिल का फ़रमान
करने अतिक्रमण
जीत या हार

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