पिताओं और पुत्रों की

बहुधा
बहुत मुश्किल होता है
भूल जाना या माफ़ करना
मैं जन्म लेना चाहता था
और जीवन जीना भी, 
सूर्य-कवच के अस्तित्व को नकार कर
या मेरे पिता के अमृत को पुनर्जीवन देने के लिए
बल्कि उनके नज़दीक रहने के लिए
क्रूर माता की दुष्टता से परे
शर्मनाक ज़िन्दगी और देशद्रोह से दूर
कुछ ग़ुलाम अर्जुनों पर विजय पाने के लिए
और तुम्हें अपना योग्य सिंहासन देने के लिए
हे मेरे प्रिय अभिमानी राजकुमार! 
मुझे एक मौक़ा दो, फिर देखो
मैं अपनी राजसी शक्ति फैलाऊँगा
धूर्त कृष्ण के अधिकारों को छीनकर
मैं तुम्हारे पराजय को जीत के सपने में बदल दूँगा
इस बार मैं कभी नहीं पीछे हटूँगा
पिता होते हुए पुत्र तनाव में! 
भले ही शांत, सौम्य, मगर वीर भी कम नहीं। 

<< पीछे : राजकुमार हेमलेट आगे : अभिमान >>

लेखक की कृतियाँ

विडियो
ऑडियो

अनुवादक की कृतियाँ

पुस्तक समीक्षा
बात-चीत
साहित्यिक आलेख
ऐतिहासिक
कार्यक्रम रिपोर्ट
अनूदित कहानी
अनूदित कविता
यात्रा-संस्मरण
रिपोर्ताज

विशेषांक में