पिताओं और पुत्रों की

पिताओं और पुत्रों की  (रचनाकार - प्रो. असीम पारही)

(अनुवादक: दिनेश कुमार माली )
कौन कहता है कि तुम भगवान हो? 

 

मध्यवित्तों के रक्षक
चमत्कारों के अधिपति
मानव विध्वंसक
और तुम चाहते हो दंगा-फ़साद
तुम क्यों चाहते हो ‘धर्म’ को करना परिभाषित? 
क्यों सभी सर झुकाएँ? 
तुम और तुम्हारा प्रचंड अहम
और तख़्तापलट की इच्छाशक्ति
एक को छोड़कर सभी ने की आराधना
एक को छोड़कर सभी ने किया आज्ञा-पालन
सभी मगर केवल तुम जीते और
सभी मगर केवल तुमसे ईर्ष्या
बार-बार, 
तुमने किया दावा
कि तुम सर्जक और विनाशक हो
फिर भी, वह हँसते हुए तुम्हें कहता है ‘मायावी’? 
वह राजा है, वह नेता है
वीर आत्मा है, मानव रक्षक है
तुम उतावले हो अपना ‘ईश्वरत्व’ सिद्ध करने के लिए? 
पुरुष और महिलाएँ, 
अनिर्वासित, अनाहत हैं यहाँ
हमारा स्वर्ग, हमारी धरती
हमारे परिधि में क्यों करते हो हस्तक्षेप? 
तुम और तुम्हारा व्यर्थ का दावा
सारे सर्जन और विनाश शर्मसार
काल के गर्त में गए समा
प्रकृति के आदेश ने
तुम्हें बना दिया अपाहिज
यह वह जानता था
और इसलिए हो गया परास्त, 
इसलिए तुम्हारा पीछे हटना
मैं उसका मूलरूप
मैं पार्थिव
मैं स्वार्थी
मैं योग्य

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