स्मृति
स्मृति और बोध के मध्य
निहित मेरी आदिम इच्छा
पकड़े रहने और आश्चर्य करने की।
स्मृति, मधुर ‘स्व’ की प्रसिद्ध माया
चुभने-भेदने वाली श्वेत प्रतिच्छाया,
स्नायु-मंडल से गुज़रने वाले त्वरित परिदृश्य
सौन्दर्य की जननी, अभिशप्त भाग्य।
और बोध,
अंतर्ज्ञान का आभिजात्य
पागलों की तरह दौड़ने वाला क्षण-भंगुर सत्य।
अधर
शब्द बनते हैं, बिगड़ते है,
व्यग्र हृदय के बंद कोने से
व्यथा का कौमार्य
प्रेम का मूल्य
जो क़ैद करता है उन्हें पिंजरे में
युगों-युगों तक,
लुढ़कती सदियाँ
बड़बड़ाते हुए,
आपकी प्रकृति को करती परिवर्तित
कि आप कैसे करते हैं इतनी ठंडी हरकत?
नयन
स्वप्न का दर्पण,
जीवन का पुनर्स्थापन
प्राचीन काव्य, मधुर भजन
कवच-संघर्ष से करते दूर।
क्यों उजाड़पन, क्यों क्रंदन
तुम्हारा हस्तिनापुर, निर्वासित राजकुमार!
आश्चर्यजनक भूत होते हैं नयन
क्षुधित संगीत के आशावादी स्वन।
विषय सूची
- पिता के रोम-रोम
- समय का शरणार्थी
- पुत्र से पिता
- जियो मानव, जियो!
- एक और फरवरी
- गगन-प्रकृति
- आहत विचार
- विश्वासघात
- मृत्यु के बाद की लंबी कविता
- प्यारी माँ
- मेरे पिता के लिए
- उदासी
- फिर से आना
- पितृहीन
- आत्महत्या के शोकगीत
- मैं पीने वाला
- प्रेमी
- पौ फटने से ठीक पहले
- सूर्य-जन्मा
- राजकुमार हेमलेट
- पिता होते हुए पुत्र तनाव में!
- अभिमान
- क्या पिता एक मज़ाक है?
- मेरा चंद्रिल प्रेम
- यात्रा
- पुनरागमन
- प्रतिशोध
- हठी
- पूर्णिमा की ज्योत्स्ना में भीगी कविता
- माता
- पत्नी
- कौन कहता है कि तुम भगवान हो?
- दुर्योधन का उत्तर
- मौन
- आत्म-हत्या
- दक्षिणी पवन
- दुर्योधन-पुत्र
- इतिहास का बोझ
- अंतर्द्वंद्व
- त्रिवेणी
- मैं यहाँ हूँ
- तुम और मैं
- कर्कश सुबह
- एकजुटता का अंश
- निष्कासन
- मदलाशी
- जब मैं तुमसे प्यार करता हूँ
- मृत्युंजय
- हत्या
- जब तुम चले जाओगे
- हम
- अकेले दिन
- साँसों में जन्म-स्थान
- प्रेम और प्रतिशोध
- आगमन
- स्थितप्रज्ञ
- अविस्मरणीय समय
- मैं तुमसे यही चाहता था
- शर-शैय्या
- रात और गृह-विरह
- अभी भी नरक
- मनु-पुत्र
- आज रात मैं लिखूँगा आँसुओं से कविता
- शिखर पतन
- प्यार की दासता
- शरद ऋतु में सितंबर
- अकेले रहना एक विकल्प
- पिताओं और पुत्रों की