पिताओं और पुत्रों की

पिताओं और पुत्रों की  (रचनाकार - प्रो. असीम पारही)

(अनुवादक: दिनेश कुमार माली )
त्रिवेणी

 

स्मृति
 
स्मृति और बोध के मध्य
निहित मेरी आदिम इच्छा
पकड़े रहने और आश्चर्य करने की। 
स्मृति, मधुर ‘स्व’ की प्रसिद्ध माया
चुभने-भेदने वाली श्वेत प्रतिच्छाया, 
स्नायु-मंडल से गुज़रने वाले त्वरित परिदृश्य
सौन्दर्य की जननी, अभिशप्त भाग्य। 
और बोध, 
अंतर्ज्ञान का आभिजात्य
पागलों की तरह दौड़ने वाला क्षण-भंगुर सत्य। 
 
अधर
 
शब्द बनते हैं, बिगड़ते है, 
व्यग्र हृदय के बंद कोने से
व्यथा का कौमार्य
प्रेम का मूल्य
जो क़ैद करता है उन्हें पिंजरे में
युगों-युगों तक, 
लुढ़कती सदियाँ
बड़बड़ाते हुए, 
आपकी प्रकृति को करती परिवर्तित
कि आप कैसे करते हैं इतनी ठंडी हरकत? 
 
नयन
 
स्वप्न का दर्पण, 
जीवन का पुनर्स्थापन
प्राचीन काव्य, मधुर भजन
कवच-संघर्ष से करते दूर। 
क्यों उजाड़पन, क्यों क्रंदन
तुम्हारा हस्तिनापुर, निर्वासित राजकुमार! 
आश्चर्यजनक भूत होते हैं नयन
क्षुधित संगीत के आशावादी स्वन। 

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