मैंने तुम्हें जगाया, मैंने तुम्हें चेताया
तुम नितांत अकेले ख़ाली खड़े थे उस अरण्य
अँधेरे में तुम्हारे जन्म पर हँस रहा था भाग्य
मैं उसकी रणनीतिक सोच पर बहुत मुस्कुराया
जब तुमने याद किया अपनी बचपन की रातों में मुझे
जब तुमने चाहा अपनी क्षणिक काल्पनिक उड़ानों में मुझे
मैंने तुम्हें नहीं दिए तुम्हारे निर्दोष अधिकार
मैं रोशन करता हूँ संसार,
मैं, तुम्हारे आँसुओं की वह धार
प्यारे बेटे,
अगर मैं लड़खड़ाया एक बार भी, तुम हो जाओगे चूर-चूर
बुरे सपने तुम्हारे भाग्य को कोसेंगे बार-बार
लेकिन तब था मैं भगवान
बचा रहा था संसार का संक्रमण
आज मेरा उद्देश्य लाना है खोया सम्मान फिर
बिना हुए प्रभावित मेरे पूर्व परोपकार
बेहतर होगा, मैं पकड़ूँ तुम्हें कसकर
पूरा ब्रह्मांड दिखता उज्ज्वल तुम्हारे भीतर
मैं नहीं देख सकता तुम्हारे उदास नेत्र
विदीर्ण रथ, शत्रुओं के शोरगुल में यादों की बारात
कम कारगार ब्रह्मास्त्र और पशुपात
ज़िद्दी पिता और उत्साह ज्वलंत
मेरे बेटे, मैं तुम्हें डराता हूँ
डाँटता हूँ, शांत करता हूँ,
फिर भी शायद मैं तुम्हें प्यार करता हूँ,
अभी भी कालजयी, मनोद्वेग और तेज़ दक्षिणी पवन
करते हैं मेरे प्यार का प्रस्फुटन,
रात की अशांत पवन में कर रहा हूँ जागरण,
फिर भी सर्वोच्च और दुर्लभ, विद्रोह की किरण
पिता हैं, मगर बेटे उदास प्यार में निमग्न
सदैव तैयार कार्रवाई हेतु प्रसन्न मन
इतिहास जानता है, महाकाव्यिक समर
क्षति केवल दर्शाती भाग्य क्रूर
ब्रह्मास्त्र ही क्षमा का अकेला ज़ेवर
इसलिए प्रिय, क्यों उठाते ज्वार
या करते हृदय चूर-चूर
जब सौगंध खाते हैं कर्ण को उठाने की भास्कर?
विषय सूची
- पिता के रोम-रोम
- समय का शरणार्थी
- पुत्र से पिता
- जियो मानव, जियो!
- एक और फरवरी
- गगन-प्रकृति
- आहत विचार
- विश्वासघात
- मृत्यु के बाद की लंबी कविता
- प्यारी माँ
- मेरे पिता के लिए
- उदासी
- फिर से आना
- पितृहीन
- आत्महत्या के शोकगीत
- मैं पीने वाला
- प्रेमी
- पौ फटने से ठीक पहले
- सूर्य-जन्मा
- राजकुमार हेमलेट
- पिता होते हुए पुत्र तनाव में!
- अभिमान
- क्या पिता एक मज़ाक है?
- मेरा चंद्रिल प्रेम
- यात्रा
- पुनरागमन
- प्रतिशोध
- हठी
- पूर्णिमा की ज्योत्स्ना में भीगी कविता
- माता
- पत्नी
- कौन कहता है कि तुम भगवान हो?
- दुर्योधन का उत्तर
- मौन
- आत्म-हत्या
- दक्षिणी पवन
- दुर्योधन-पुत्र
- इतिहास का बोझ
- अंतर्द्वंद्व
- त्रिवेणी
- मैं यहाँ हूँ
- तुम और मैं
- कर्कश सुबह
- एकजुटता का अंश
- निष्कासन
- मदलाशी
- जब मैं तुमसे प्यार करता हूँ
- मृत्युंजय
- हत्या
- जब तुम चले जाओगे
- हम
- अकेले दिन
- साँसों में जन्म-स्थान
- प्रेम और प्रतिशोध
- आगमन
- स्थितप्रज्ञ
- अविस्मरणीय समय
- मैं तुमसे यही चाहता था
- शर-शैय्या
- रात और गृह-विरह
- अभी भी नरक
- मनु-पुत्र
- आज रात मैं लिखूँगा आँसुओं से कविता
- शिखर पतन
- प्यार की दासता
- शरद ऋतु में सितंबर
- अकेले रहना एक विकल्प
- पिताओं और पुत्रों की
लेखक की कृतियाँ
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- साहित्यिक आलेख
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- पूर्व और पश्चिम का सांस्कृतिक सेतु ‘जगन्नाथ-पुरी’: यात्रा-संस्मरण - 3
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