पिताओं और पुत्रों की

पिताओं और पुत्रों की  (रचनाकार - प्रो. असीम पारही)

(अनुवादक: दिनेश कुमार माली )
शिखर पतन

 

अभ्यस्त विजेता का सिर झुकाना
या पुनरुत्थित योद्धा का अचानक लड़खड़ाना
कवि वर्ग केवल सभ्य सैन्य-दल
एक तरफ़ सौम्य, दूसरी तरफ़ कवच-ढाल
 
स्वयं से आगे प्रकृति और विधा की छाया
अवैयक्तिक मैं और मेरी लाखों की माया
 
मैं देखता हूँ स्वप्न
प्रतीयमान मैं और बिलखते तुम
कितना शुभंकर यह खिलखिलाता प्रेम
स्मृतियों के मील पत्थर
शांत, शिथिल, चमकदार
 
सीता और पद्मा जैसी प्रमुख प्रेयसी, 
क्यों रौंदा उन्हें अपने अपरिष्‍कृत युद्धाभ्यास? 
देखो, कितनी दूर हैं उनका गमन
विद्रोही सीता, योद्धा पुत्री, कर्ण-पत्नी या कोई शांत बहन
 
उनकी आत्मा को दुष्ट धोखेबाज़ों से प्रचंड प्रताड़न
आत्म-विश्वास नहीं होता छलावरण
कला-दुनिया की उत्पत्ति का पूर्व-कथन
या जीवन-सार और सौन्दर्य का वर्गीकरण
 
उसी भाव से मैं कर सकता हूँ तुम्हें प्रेम
और जोड़ सकता हूँ मेरे साथ तुम्हारा नाम
भले ही रहो, मूक दर्शक तुम
वीरता और शक्ति नहीं केवल प्रज्ज्वलन
फिर क्यों द्रौपदी के दावे के प्रति दीवानापन? 
 
इसलिए मेरे प्रिय, घबराएँ नहीं हम
बल्कि अपने शर्मीले जादू से प्रकाशित हो तुम
लाख विस्फोटों से अब कैसा भय
यदि तुम और मैं लेते हैं अंतिम निर्णय? 

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