पिताओं और पुत्रों की

पिताओं और पुत्रों की  (रचनाकार - प्रो. असीम पारही)

(अनुवादक: दिनेश कुमार माली )
जब तुम चले जाओगे


जब तुम चले जाओगे
रुक जाएगी शीतल पवन
पल भर के लिए
लघु बसंत की शाम होगी अशांत
पल भर के लिए
नीरवता के अंतहीन ग्रीष्म की अनजान चेतावनी
उस मोड़ पर
शाश्वत अतीत
जिसने कभी नहीं किया भविष्य उद्घोषित, 
चंद्रमा और सितारे हैं अवश्य
पर तार्किक दुनिया पर कला की विजय, 
तुम हो, पर सांसारिक राजद्रोह के संपूरक
अब जब तुम चले गए हो
निश्चित समय पर निश्चित स्थान छोड़कर
क्षणभंगुर प्रेम की अनिश्चित प्रकृति त्यागकर
व्यतीत होता है समय
क्योंकि यह होना चाहिए या फिर अपना भाग्य
स्थायी सक्षम पकड़ के बिना
सगे-संबंधियों परिजनों के परिवेश से
रिक्त, मगर किसी तीव्र व्यर्थ प्रार्थना
कराती तुम्हारा स्मरण
अपने आप में कारण
और उसका प्रभाव घिनौना
जैसे दूर गगन का उदासीन प्रकीर्णन
या अँधेरी पृथ्वी के मूल चरण
प्रेम है अहंकारी सुमन
तुम्हारे और मेरे अस्तित्व के बावजूद
हमारी पारस्परिक अभिव्यक्ति का असामर्थ्य। 

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