पिताओं और पुत्रों की

पिताओं और पुत्रों की  (रचनाकार - प्रो. असीम पारही)

(अनुवादक: दिनेश कुमार माली )
रात और गृह-विरह


 
मेरे वातायन रहते खुले आधी रात
ताकि प्रवेश करें खुली पवन अनवरत, 
कोई झाँकता अंदर अनजान
दया भाव से खुलते मेरे नयन
अँधेरे सत्य में बसंत का आगमन
भरने शांत आहें अंतहीन। 
 
तुम हो मेरे आराधक हृदय, 
ऊर्जस्वित, आलोकित लय
हमारे दूर होने के बाद भी
बचा हुआ हमारा यह रहस्य, 
तुम्हारे प्रश्वासों की जादुई मुस्कान
प्रेम दुर्बल स्नायुओं के कोमल क्षण
धधकती वेदना के मध्य शांत समर्पण
जीवित, मृत्यु-सम; हठी और विकारहीन
 
मानव के लिए ईर्ष्यालु भगवान
हमारा परम कर्त्तव्य, पृथ्वी का अधिग्रहण
हमारा प्रेम उनकी कलाओं के आधुनिक प्रवचन
लैंगिक विभेद या उत्सवी प्रदर्शन, 
इसलिए बुनना होता है स्वप्न
जिज्ञासु, उदात्त और प्राचीन
 
प्रिय, मैं अभी भी करता हूँ आराधना
तुम्हारी लजकुली और संगीतमय भावना
और करता हूँ पोषित प्रार्थना
हमारे मिलन के बाद दुपहरी निर्वात का झकझोरना। 

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